Fake Petitions In Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (6 दिसंबर 2024) को कहा कि झूठे मामलों की फाइलिंग न्याय प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव डालती है. कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब उसने आजीवन कारावास की सजा काट रहे अपराधियों की ओर से समय से पहले रिहाई की याचिकाओं में अहम तथ्यों को छुपाने के मामले पर गौर किया. कोर्ट ने कहा कि यह मामला अकेला नहीं है, बल्कि हाल ही में एक ऐसा ही मामला सामने आया था जिसमें एक वकील की ओर से दाखिल की गई 45 याचिकाओं में गलती सामने आई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यह गलती होने के अलग-अलग उदाहरण नहीं हैं. यहां तक कि पिछले हफ्ते भी ऐसा हुआ था. हमने एक ही वकील की ओर से दायर किए गए मामलों में इस पर ध्यान देते हुए लगभग 45 आदेश दिए हैं."

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और एजी मासिह की खंडपीठ ने कहा, "क्या यह हमारे सिस्टम पर सवाल नहीं उठाता?" कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की घटनाएं हाई कोर्ट में कम ही होती हैं और यह मुमकिन है कि अन्य बेंचों में भी हो रही होंगी, लेकिन कार्यभार अधिक होने के कारण कोई इसकी ठीक से जांच नहीं हो पाती." कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता एस मुरलीधर से इस संबंध में दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए मदद मांगी और मामले को 19 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध किया.

वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नामांक प्रक्रिया पर उठे सवाल

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मुद्दे पर चिंता जताई और कहा कि इससे न्यायपालिका पर गहरा असर पड़ेगा, खासकर तब जब दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामांकित किया. मेहता ने उस प्रक्रिया पर सवाल उठाए जिसमें यह नामांकन किया गया था, यह आरोप लगाते हुए कि एक सदस्य ने समिति से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि अंतिम सूची उसकी अनुपस्थिति में तैयार की गई थी.

वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नामांकन पर पुनर्विचार की जरूरत

मेहता ने कहा, "जब यह अदालत वरिष्ठ अधिवक्ता का नामांकन करती है तो यह वकील पर जिम्मेदारी डालती है. इसे केवल वितरण का मामला न बनने दिया जाए." कोर्ट ने इस बात पर गौर करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की आपत्ति पर कहा कि 2017 और 2023 में तीन जजों की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नामांकन की प्रक्रिया पर जो निर्णय दिए थे, उन्हें दो जजों की पीठ से फिर से नहीं देखा जा सकता.

रिहाई की याचिका में छुपाए गए तथ्य

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (6 दिसंबर 2024) को एक याचिका में यह पाया कि उसमें यह तथ्य छुपाए गए थे कि अदालत ने अपराधी को रिहाई से पहले 30 साल की सजा पूरी करने का आदेश दिया था. इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले वकील से स्पष्टीकरण मांगा गया और बाद में यह खुलासा हुआ कि वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा के कहने पर यह याचिका दाखिल की गई थी. मल्होत्रा ने इस गलती की पूरी जिम्मेदारी ली.

वरिष्ठ अधिवक्ता मुरलीधर ने अदालत से कहा कि केवल वही अधिवक्ता जो रिकॉर्ड पर होते हैं और जिन्हें लिखित परीक्षा में पास किया जाता है, उन्हें सुप्रीम कोर्ट में मामले दायर करने का अधिकार मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्यों के लिए नियुक्त पैनल वकील अक्सर राज्य कानूनी विभाग से मामलों को हासिल करते हैं और फिर उसे फाइल करने के लिए अधिवक्ता के पास भेजते हैं. 

ये भी पढ़ें:

महाराष्ट्र के डिप्टी CM अजित पवार को बड़ी राहत! बेनामी संपत्तियों को कोर्ट ने किया रिलीज