Supreme Court Full Court Meeting: अपना कार्यभार संभालने के कुछ घंटों के अंदर ही भारत के नए मुख्य न्यायाधीश (CJI) यू यू ललित (UU Lalit) ने शनिवार को पूर्ण न्यायालय (Full Court Meeting) की एक बैठक बुलाई. आखिर ये फुल कोर्ट मीटिंग क्या है, ये क्यों बुलाई जाती है और क्यों पद संभालते ही नए सीजेआई को इस बैठक को कराने की जरूरत महसूस हुई. यहां हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे.


फुल कोर्ट मीटिंग क्या है?


पूर्ण न्यायालय की बैठक (Full Court Meeting) के शाब्दिक अर्थ के बारे में बात की जाए तो इसका मतलब एक ऐसी बैठक से है जिसमें न्यायालय के सभी न्यायाधीश (Judges) भाग लेते हैं. शनिवार को नए सीजेआई यू यू ललित की बुलाई पूर्ण न्यायालय बैठक में न्यायाधीशों ने अदालत में मामलों की लिस्टिंग और बैकलॉग से संबंधित मुद्दों से कैसे निपटा जाए इस पर चर्चा की.


कब होती हैं ये बैठक?


फुल कोर्ट मीटिंग करने को लेकर कोई लिखित नियम नहीं है. परंपरा के मुताबिक न्यायपालिका (Judiciary)  के महत्व के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा पूर्ण न्यायालय की बैठक बुलाई जाती है. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) और उच्च न्यायालयों (High Courts) में वकालत करने वाले अधिवक्ताओं (Advocates) के वरिष्ठ पदनाम (Senior Designations) भी पूर्ण न्यायालय की बैठकों के दौरान तय किए जाते हैं. 
 
पूर्ण न्यायालय बैठक की क्या अहमियत है?


फुल कोर्ट मीटिंग का मूल विचार सबको साथ लेकर चलना है. ये बैठक देश की कानूनी व्यवस्था (Legal System) को घेरने वाली या बुरा असर डालने वाली परेशानियों से निपटने के लिए की जाती है. इसके जरिए आम समाधान पर पहुंचने और अदालत की प्रशासनिक प्रथाओं या व्यवहारों (Administrative Practices) में यदि जरूरी हो तो कोई भी संशोधन करने का एक आदर्श अवसर मिलता है.


कितनी बार होती हैं ये बैठकें


भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) के विवेक पर पूर्ण न्यायालय (Full Court Meeting) की बैठक बुलाई जाती है, हालांकि इसके लिए  किसी खास तरह का कोई कैलेंडर का इस्तेमाल नहीं होता है. इससे पहले 2020 और उससे पहले 1997 में फुल कोर्ट मीटिंग बुलाई जा चुकी हैं.


कोविड के वक्त भी हुई ये बैठक


इससे पहले भी पूर्ण न्यायालय या पूरी न्यायालय की बैठक हो चुकी हैं. दो साल पहले मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के वक्त जब अदालत के कर्मचारियों के बीच यह बीमारी फैली थी. उस वक्त न्यायालय की पूरी बैठक बुलाई गई थी. यह बैठक वकील संघों की मांग पर बुलाई गई थी. इसमें अगली सूचना तक अदालत को बंद करने और आगे के कदमों का फैसला करने जैसी मांगों पर चर्चा की गई थी. इसके अलावा पहले भी 7 मई, 1997 को हुई एक पूर्ण अदालत की बैठक हुई थी.


इसमें फैसला लिया गया कि हर न्यायाधीश को अपनी सभी संपत्तियों अचल संपत्ति या निवेश के बारे में खुलासा करना चाहिए. फिर चाहे ये संपत्तियां उनके खुद के नाम  पर या पति या पत्नी या किसी भी आश्रित व्यक्ति के नाम पर ली गई हों. फैसले में किसी भी  भौतिक प्रकृति की यानी चल-अचल संपत्ति (Substantial Nature) का अधिग्रहण करने पर इन संपत्तियों के बारे में एक सही वक्त के अंदर बताना और उसके बाद इन सपंत्तियों का खुलासा करना जरूरी बताया गया है.


न्यायाधीशों के लिए भी सुधार की प्रक्रिया


7 मई 1997 बैठक में फैसला लिया गया कि भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश (Hon’ble Chief Justice) द्वारा उन न्यायाधीशों के खिलाफ उचित सुधारात्मक कार्रवाई के लिए एक आंतरिक प्रक्रिया तैयार की जानी चाहिए जो एक न्यायाधीश के तौर पर अपने व्यवहार और कार्यों में न्यायायिक प्रणाली के सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं. अगर कानूनी भाषा में समझा जाए तो  ऐसे न्यायाधीश जो अपनी  चूक या कमीशन (Omission Or Commission) के कामों से न्यायिक जीवन के सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत मूल्यों का पालन नहीं करते हैं.


चूक और कमीशन से मतलब है कि ऐसे काम जो आप करने में विफल रहे हैं और वो काम जो आपने किए हैं. ये शब्द अक्सर कानून के संदर्भ में इस्तेमाल किए जाते हैं. इसके साथ ही एससी (SC) और एचसी (HC) के न्यायाधीशों के ध्यान में रखे जाने और पालन किए जाने के लिए कुछ न्यायिक मानक और सिद्धांत निर्धारित किए गए हैं. इन्हें न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन यानी किसी बात को फिर से या अलग तरीके से कहने की क्रिया, खासकर अधिक साफ तरीके से बात कहना (Restatement Of Values Of Judicial Life) कहा जाता है. इस पर  कायम न रहने वाले न्यायाधीशों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाती है. 


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