मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की ओर जूता उछालने की कोशिश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (16 अक्टूबर, 2025) को कहा कि ऐसी घटनाएं अक्सर पैसा कमाने का जरिया होती हैं. उन्होंने कहा कि ऐसी चीजों पर सोशल मीडिया पर हिट्स ज्यादा आते हैं तो एल्गोरिदम ऐसे कंटेंट को बढ़ावा देता है.
कुछ वकीलों ने नियमों के मुताबिक अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी से जूता उछालने वाले वकील राकेश किशोर के खिलाफ अवमानना का मुकदमा चलाने की सहमति मांगी थी, जिस पर एजी ने सहमति दे दी. गुरुवार को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच के सामने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह मामला रखा
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच को बताया कि अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी ने वकील के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्रवाई शुरू करने के लिए अपनी सहमति दे दी है क्योंकि यह संस्थागत शुचिता का सवाल है. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एल्गोरिदम पर काम करते हैं और इस तरह की घटनाएं और टिप्पणियां ऐसे उत्पाद हैं जिनसे पैसा कमाया जाता है. बेंच ने सलाह दी कि इस मामले को आगे बढ़ाने के बजाय बंद कर देना चाहिए क्योंकि सोशल मीडिया पर यह मामला चर्चा का विषय बनेगा.
जस्टिस सूर्यकांत ने सोशल मीडिया की अनियमित प्रकृति को रेखांकित करते हुए कहा कि उनके लिए, 'हम उत्पाद भी हैं और उपभोक्ता भी.' जस्टिस बागची ने जस्टिस सूर्यकांत से सहमति जताते हुए सोशल मीडिया यूजर्स के लिए कहा, 'ये घटनाएं अक्सर पैसा कमाने का जरिया होती हैं. एल्गोरिदम को व्यक्तियों की सहज प्रवृत्ति को आकर्षित करने के लिए इस तरह से प्रोग्राम किया गया है. जब इस तरह की टिप्पणियां की जाती हैं, और हिट्स की संख्या अधिक होती है, तो एल्गोरिदम ऐसी सामग्री को बढ़ावा देता है. ऐसी स्थिति में, श्रीमान विकास सिंह, हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि आपके उल्लेख करने से भी कमाई की जाएगी. इसे स्वाभाविक रूप से खत्म होने दीजिए.'
कोर्ट ने संकेत दिया कि मामले को दीवाली के बाद सूचीबद्ध किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा, 'देखते हैं कि एक सप्ताह के बाद भी कुछ बिक्री योग्य बिंदु बचे हैं या नहीं.' जस्टिस सूर्यकांत ने विकास सिंह से कहा कि दुर्भाग्यवश सोशल मीडिया पर इस तरह की घटनाएं ट्रेंड करने लगती हैं और आगे कार्रवाई करने से विवाद बरकरार रहेगा.
कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति के अधिकार का इस्तेमाल दूसरों की गरिमा और शुचिता की कीमत पर नहीं किया जा सकता. विकास सिंह ने बताया कि राकेश किशोर ने अपनी इस हरकत पर खेद व्यक्त नहीं किया है और वह इंटरव्यू दे रहे हैं, जो सोशल मीडिया पर मौजूद हैं और सुप्रीम कोर्ट की संस्थागत शुचिता को प्रभावित कर रहे हैं. बेंच ने कहा, 'हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इस अधिकार का इस्तेमाल दूसरों की गरिमा और शुचिता की कीमत पर नहीं किया जा सकता.'
विकास सिंह ने कहा, 'इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया है. राकेश किशोर लगातार इंटरव्यू दे रहे हैं और यह अब भी जारी है, जिससे संस्थागत शुचिता और गरिमा को ठेस पहुंच रही है. कृप्या सोशल मीडिया को ऐसी सामग्री प्रसारित करने से रोकें. मैं जॉन डो आदेश की तर्ज पर आदेश का अनुरोध कर रहा हूं.' जॉन डो आदेश, अदालत की ओर से पारित एक प्रकार का कानूनी आदेश होता है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी अज्ञात पक्ष या पक्षों के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनुमति देता है.
6 अक्टूबर को सुबह करीब 11:35 बजे कोर्टरूम संख्या-1 में एडवोकेट राकेश किशोर ने अपना जूता उतारकर सीजेआई गवई की अध्यक्षता वाली बेंच की ओर फेंकने की कोशिश की थी. सुरक्षाकर्मियों ने आरोपी एडवोकेट को तुरंत हिरासत में ले लिया था. अदालती कार्यवाही के दौरान हुई इस घटना से अविचलित मुख्य न्यायाधीश ने अदालत के अधिकारियों और अदालत कक्ष में मौजूद सुरक्षाकर्मियों से इसे नजरअंदाज करने और राकेश किशोर को चेतावनी देकर छोड़ देने को कहा था.