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सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अपने मुवक्किल को कानूनी सेवा दे रहे वकील को बहुत सीमित मामलों में ही जांच एजेंसी पूछताछ का समन भेज सकती हैं. यह समन उन्हीं मामलों में भेजा जा सकता है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के अपवादों में आते हैं.

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. जांचे एजेंसियों की ओर से मनमाने ढंग से आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को समन किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था.

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बेंच ने कहा कि समन सिर्फ उन्हीं मामलों में भेजे जा सकते हैं, जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के अपवादों में आते हैं, यानी जहां मुवक्किल ने वकील से किसी आपराधिक कृत्य में सहयोग मांगा हो. कोर्ट ने कहा कि दूसरे मामलों में मुवक्किल की तरफ से दिए गए दस्तावेज और जानकारी को सौंपने के लिए वकील से नहीं कहा जा सकता. कोर्ट ने यह भी कहा है कि वकील को समन एसपी रैंक के अधिकारी की अनुमति से ही भेजा जा सकता है और वकील इस समन को कोर्ट में चुनौती दे सकता है.

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 मुवक्किल को दिया गया एक विशेषाधिकार है, जिसके तहत वकील को गोपनीय रूप से किए गए किसी भी व्यवसायिक संवाद का खुलासा नहीं करने का दायित्व है. कोर्ट ने कहा कि वकील को भेजे गए समन को मुवक्किल या वकील बीएनएसएस की धारी 528 के तहत कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं.

कोर्ट ने कहा कि अगर किसी आरोपी के वकील को समन भेजा जाता है तो उसमें बताया जाए कि किस आधार पर उस मामले को धारा 132 का अपवाद माना जा रहा है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में वकील के पास मौजूद दस्तावेजों को प्रस्तुत करना धारा 132 के विशेषाधिकार के अंतर्गत नहीं आएगा, चाहे वो सिविल केस हो या क्रिमिनल केस हो.

कोर्ट ने कहा कि इन-हाउस वकीलों को बीएसए की धारा 132 के तहत प्रोटेक्शन नहीं मिलेगा क्योंकि वे कोर्ट में प्रैक्टिस नहीं करते हैं. बीएसए की धारा 134 के तहत इन-हाउस वकीलों को मुवक्किल के साथ की गई बातचीत के संरक्षण का अधिकार है.

(निपुण सहगल के इनपुट के साथ)