नई दिल्ली: बिना सफाई नदियों और तालाबों में औद्योगिक कचरा डालने वालों की अब खैर नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 3 महीने में जो उद्योग एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट न लगाएं, उनकी बिजली सप्लाई काट दी जाए.

हाल ही में बेंगलुरु की बेलांदूर झील से आग और धुआं उठता देख सकते में आए पर्यावरण प्रेमियों के लिए ये खबर सुकून देने वाली है. कोर्ट ने कई साल से लंबित इस मामले में उद्योग, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड और राज्य सरकार की जवाबदेही तय कर दी है.

कोर्ट ने कहा है कि हर राज्य में वहां का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सभी छोटे-बड़े उद्योगों को एक सार्वजनिक नोटिस जारी करे. उनसे अपने यहां एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट की जानकारी देने को कहे. 3 महीने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उद्योगों की जांच करे. जहां भी ट्रीटमेंट प्लांट मौजूद न हो या बेकार पड़ा हो, उसकी बिजली काटने की सिफारिश बिजली वितरण कंपनी से की जाए.

कोर्ट ने राज्य सरकार और नगरपालिकाओं को भी हिदायत दी है कि बिना सफाई के औद्योगिक क्षेत्र से निकला पानी नदियों या तालाब में न जाने दिया जाए. कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार और नगरपालिकाएं 6 महीने में कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट लगाएं. सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ़ किया है कि वो भविष्य में इस मामले की निगरानी करता रहेगा.