सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को मंगलवार (25 नवंबर, 2025) को इसे लेकर फटकार लगाई कि वह सहकारी समिति और इसी तरह के निकायों के संचालन में औपनिवेशिक युग की मानसिकता’ बरकरार रखे हुए है, जिसके तहत जिलाधिकारी जैसे नौकरशाहों के जीवनसाथी को उनका पदेन पदाधिकारी बनाया जाता है.

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मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत (CJI Surya Kant) और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने राज्य सरकार को दो महीने के अंदर संबंधित प्रावधानों में संशोधन के लिए कदम उठाने को कहा है. अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई सोसाइटी के उपनियमों में जिलाधिकारी और मुख्य सचिव जैसे शीर्ष अधिकारियों की पत्नियों को अध्यक्ष जैसे पद प्रदान किया जाना जारी है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे प्रावधान लोकतांत्रिक सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत हैं.

बेंच सीएम जिला महिला समिति, बुलंदशहर की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. समिति ने जिलाधिकारी की पत्नी को उसका पदेन अध्यक्ष बनाए जाने की प्रथा को चुनौती दी थी. सीएम जिला महिला समिति एक महिला स्वयं सहायता समूह है.

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समूह ने दलील दी कि निराश्रित महिलाओं की सहायता के लिए गठित यह संस्था अस्थाई आधार पर संचालित की जा रही है और इस व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव है. बेंच ने सवाल किया, 'बिना किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के ऐसी संस्था की पदेन अध्यक्ष जिलाधिकारी की पत्नी क्यों होनी चाहिए?' पीठ ने कहा कि आधुनिक शासन में ऐसी व्यवस्थाओं का कोई औचित्य नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक निकायों का नेतृत्व निर्वाचित सदस्यों को करना चाहिए. राज्य सरकार ने स्वीकार किया कि 1860 के पंजीकरण कानून को बदलने के लिए एक नया विधेयक पहले से ही तैयार किया जा रहा है और इसे अंतिम रूप देने के लिए जनवरी के अंत तक का समय मांगा.

कोर्ट ने निर्देश दिया कि जैसे ही राज्य विधानसभा विधेयक पारित करे, उसे जल्द से जल्द स्वीकृत और अधिसूचित किया जाए. कोर्ट ने कहा कि संशोधित प्रावधानों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी राज्य-वित्तपोषित सोसाइटी, ट्रस्ट और विधिक इकाइयों के लिए आदर्श उपनियम बनाए जाएं और यह प्रावधान होना चाहिए कि उनका पालन करने से इनकार करने वाली सोसाइटी अपनी कानूनी स्थिति या सरकारी सहायता खो सकती है.