Sri Lanka Crisis: विदेश मंत्री एस जयशंकर (EAM Dr S Jaishankar ) ने मंगलवार को सर्वदलीय बैठक (All Party Meeting) में कहा कि श्रीलंका बहुत गंभीर संकट (Sri Lanka Economic Crisis) का सामना कर रहा है और स्वाभाविक रूप से भारत (India) इससे काफी चिंतित है.उन्होंने साथ ही भारत में ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न होने की आशंका संबंधी बयानों को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि श्रीलंका को लेकर कई गलत तुलनाएं हो रही हैं और कुछ लोग पूछ रहे हैं कि क्या ऐसी स्थिति भारत में आ सकती है. उन्होंने इसे गलत तुलना बताया. 


राज्यों के आंकड़ों पर विपक्षी दलों ने जताई आपत्ति


श्रीलंका के संकट पर सरकार की तरफ से दिए गए प्रेजेंटेशन में भारत के विभिन्न राज्यों की आर्थिक स्थिति पर दिए गए आंकड़ों पर क़ई राजनीतिक दलों ने आपत्ति जताई, जिसमें YSR, TRS, TMC, AIMIM , DMK शामिल थे. इन दलों के नेताओं का कहना था कि श्रीलंका के हालात पर बुलाई गई बैठक में जीडीपी के मुकाबले राज्यों के कर्ज भार के आंकड़ों पर चर्चा करना ठीक नहीं है.जरूरत है तो इसके लिए अलग बैठक बुलाई जानी चाहिए. इन दलों की शिकायत थी कि कुछ राज्यों के आंकड़ों को उभारकर बताया जा रहा है.


इसके बाद प्रेजेंटेशन को आखिरी की कुछ स्लाइड पर रोक दिया गया. वहीं इन दलों की मांग थी कि राज्यों के कर्ज के आंकड़ों पर बात हो रही है तो केंद्र सरकार के कर्ज के आंकड़ों पर भी बात होनी चाहिए.


एस जयशंकर ने बताया-श्रीलंका-भारत के अच्छे संबंध


श्रीलंका पर सर्वदलीय नेताओं की बैठक के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा- श्रीलंका में एक बहुत ही गंभीर संकट है, वो हमारा बहुत करीबी पड़ोसी है.अगर किसी पड़ोसी देश में अस्थिरता है या कोई हिंसा है, तो यह हमारे लिए गहरी चिंता का विषय है. हमारे और श्रीलंका के आपसी संबंध रहे हैं. मछुआरों के मुद्दों के संदर्भ में कुछ बार बातें सामने आई हैं. वहां लंबे समय से हमारे ऐसे कई मुद्दे हैं. इसलिए, स्वाभाविक रूप से यह एक चिंता का विषय है.


उन्होंने बताया कि  यह सभी पार्टी नेताओं की बैठक थी. हमारी ब्रीफिंग श्रीलंका की स्थिति पर थी. आने वाले नेताओं की संख्या 38 थी. हमने 46 पार्टियों को आमंत्रित किया था, 28 पार्टियों ने भाग लिया था. हमारी तरफ से 8 मंत्री थे, जिनमें प्रह्लाद जोशी और पुरुषोत्तम रूपाला शामिल थे.


गंभीर आर्थिक-राजनीतिक संकट को झेल रहा है श्रीलंका 


श्रीलंका पिछले सात दशकों में सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, जहां विदेशी मुद्रा की कमी के कारण भोजन, ईंधन और दवाओं सहित आवश्यक वस्तुओं के आयात में बाधा आ रही है. सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शनों के बाद आर्थिक संकट से उपजे हालातों ने देश में एक राजनीतिक संकट को भी जन्म दिया है. कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया है.


जानकारों के अनुसार पड़ोसी देश श्रीलंका को करीब 2.2 करोड़ की अपनी आबादी की बुनियादी जरूरतें पूरा करने के लिए अगले छह महीनों में पांच अरब डॉलर की जरूरत होगी. पिछले कई महीनों से देश में जरूरी सामान और ईंधन की किल्लत बनी हुई है.


रविवार को यहां सरकार विरोधी प्रदर्शन के 100 दिन पूरे हो गए. इन प्रदर्शनों की शुरुआत नौ अप्रैल को हुई थी. प्रदर्शनों के बाद गोटबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा. राजपक्षे (73) श्रीलंका छोड़कर बुधवार को मालदीव गए और फिर बृहस्पतिवार को सिंगापुर पहुंचे. उन्होंने शुक्रवार को इस्तीफा दिया था.


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