कांग्रेस संसदीय दल की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा नीतियां न केवल प्रकृति के हितों के खिलाफ जा रही हैं, बल्कि अरावली पर्वतमाला जैसी महत्वपूर्ण प्राकृतिक धरोहर के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं.
सोनिया गांधी द हिंदू में लिखे एक आर्टिकल में केंद्र के उस फैसले पर कड़ा विरोध जताया है, जिसमें कहा गया है कि अरावली में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां खनन प्रतिबंध के दायरे में नहीं आएंगी. उनके अनुसार यह निर्णय उन समूहों के लिए वरदान है जो अवैध खनन और जमीन कब्जे में शामिल रहते हैं. उन्होंने शंका जताई कि इस नीति से अरावली की करीब 90% पहाड़ियों को नुकसान झेलना पड़ेगा और यह क्षेत्र धीरे–धीरे खत्म होने की कगार पर पहुंच सकता है. उन्होंने याद दिलाया कि अरावली सदियों से उत्तर भारत की जलवायु को संतुलित रखने, थार रेगिस्तान के फैलाव को रोकने और राजस्थान के जंगलों को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है.
दिल्ली-NCR में स्मॉग और भूजल में यूरेनियमसोनिया गांधी ने अपने लेख में चेतावनी दी कि राजधानी दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण अब रोज़मर्रा की समस्या नहीं रहा, बल्कि यह एक बड़े जन-स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुका है.उन्होंने दावा किया कि देश के दस बड़े शहरों में सालाना 30 हजार से अधिक मौतें सिर्फ प्रदूषण की वजह से हो रही हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कई इलाकों में भूजल के नमूनों में असामान्य मात्रा में यूरेनियम पाया जाना बेहद चिंताजनक है और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
सरकार की नीतियां पर्यावरण से अधिक कॉर्पोरेट हितों को बढ़ावा देती हैंसोनिया गांधी ने केंद्र के कई विधेयकों और नीतियों को पर्यावरण विरोधी बताया.वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2023 के बारे में उनका कहना है कि इससे जंगल काटना आसान हो गया है और पर्यावरणीय सुरक्षा कमजोर हुई है. उन्होंने यह भी कहा कि पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) 2020 के मसौदे में जनसुनवाई की ताकत कम कर दी गई है, जिससे स्थानीय लोग अपनी समस्याएं ठीक से सामने नहीं रख पा रहे. CRZ अधिसूचना 2018 को उन्होंने तटीय क्षेत्रों को निर्माण के लिए खुला छोड़ने वाला निर्णय बताया, जिससे समुद्र तटों और तटीय समुदायों पर असर पड़ेगा.
वनवासियों और स्थानीय समुदायों को दोषी बताने का आरोपउनका कहना है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 का गलत अर्थ निकालकर जंगलों में रहने वाले समुदायों को कई बार विरोधी के रूप में पेश किया जाता है.उन्होंने चिंता जताई कि बाघ संरक्षण और अन्य पर्यावरणीय योजनाओं के नाम पर हजारों परिवारों को विस्थापन का खतरा पैदा हो गया है.
सोनिया गांधी ने उठाए सवालसोनिया गांधी ने उन परियोजनाओं का भी जिक्र किया जो बड़े पैमाने पर जंगलों को प्रभावित कर सकती हैं. उन्होंने ग्रेट निकोबार में होने वाले विशाल प्रोजेक्ट, छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में खनन और अरावली की पहाड़ियों में बढ़ती कटाई को लेकर गंभीर चिंता जताई.
कांग्रेस की मांग पर्यावरण से जुड़े संशोधनों को तुरंत वापस लिया जाएसोनिया गांधी ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वे वन संरक्षण अधिनियम 1980 और वन संरक्षण नियम 2022 में किए गए संशोधनों को रद्द करें. उनका कहना है कि कंपनियों को बाद में मंजूरी देने का प्रावधान भ्रष्टाचार और प्राकृतिक संसाधनों के गलत तरीके से इस्तेमाल करने का रास्ता खोलता है.
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