देशभर में चल रहे वोटर लिस्ट के स्पेशल इन्टेंसिव रिवीजन (SIR) को चुनौती देने के लिए दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घुसपैठियों के मुद्दे पर चिंता जताई है. बुधवार (26 नवंबर, 2025) को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या आधार कार्ड होल्डर होने की वजह से किसी गैर भारतीय को भी चुनाव में शामिल होने का अधिकार देना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि आधार का मकसद सभी लोगों तक सामाजिक कल्याण लाभ पहुंचाना है, लेकिन ये वोट का अधिकार नहीं दे सकता.

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मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि आधार पूर्ण नागरिकता का प्रमाण नहीं देता है इसलिए हमने कहा था कि एसआईआर के लिए जरूरी दस्तावेजों में इसे सिर्फ एक दस्तावेज के तौर पर शामिल किया जा सकता है.

सीजेआई सूर्यकांत ने कहा, 'अगर आधार किसी को राशन प्राप्त करने का अधिकार देता है तो क्या उसे वोट का भी अधिकार दिया जाना चाहिए? मान लो किसी पड़ोसी मुल्क का कोई व्यक्ति काम करने के लिए यहां रहता है तो?'

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कोर्ट ने साफ किया कि आधार को नागरिकता का निर्विवाद दस्तावेज नहीं माना जा सकता है. इसके उद्देश्य सीमित हैं. कोर्ट ने यह सुझाव मानने से भी इनकार कर दिया कि चुनाव आयोग को पोस्ट ऑफिस की तरह काम करना चाहिए और फॉर्म 6 के हर आवेदन को स्वचालित रूप से स्वीकार करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए फॉर्म 6 के साथ दिए गए दस्तावेजों की सत्यता निर्धारित करने का अधिकार है. बेंच ने कहा कि चुनाव आयोग कोई पोस्ट ऑफिस नहीं है.

सुनवाई के दौरान कुछ याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया लोकतंत्र को प्रभावित कर रही है. उन्होंने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया आम वोटर्स पर एक असंवैधानिक भार है, कई वोटर्स ऐसे हैं जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते हैं और अगर वे फॉर्म नहीं भरेंगे तो उन्हें मतदाता सूची से बाहर कर दिया जाएगा. उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि अगर किसी को लिस्ट से बाहर किया तो उसके लिए उचित और निष्पक्ष प्रक्रिया का उपयोग होना चाहिए.

कपिल सिब्बल ने कहा कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन इस बात की आशंका तो देता है कि कार्ड रखने वाले नागरिक हो सकता है. अगर आप आधार छीनना चाहते हैं तो इस प्रक्रिया के जरिए लें और इस प्रक्रिया को कोर्ट के सामने सही साबित होने दीजिए.