सीनियर एडवोकेट अभिषेक सिंघवी ने गुरुवार (27 नवंबर, 2025) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि निर्वाचन आयोग चुनाव कराने की आड़ में संसद और विधानसभाओं के विशुद्ध विधायी कार्यों को अपने हाथों में नहीं ले सकता.

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मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत (CJI Surya Kant) और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच के समक्ष कई राज्यों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के संबंध में निर्वाचन आयोग के फैसले का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से एडवोकेट अभिषेक सिंघवी ने दलीलें पेश कीं.

बेंच ने निर्वाचन आयोग की शक्तियों की विस्तृत पड़ताल की, क्योंकि अभिषेक सिंघवी और सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि आयोग अपनी संवैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण कर रहा है और एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान नागरिकों पर अनुचित प्रक्रियात्मक बोझ डाल रहा है.

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अभिषेक सिंघवी ने कहा, 'किसी भी मानदंड से यह नहीं कहा जा सकता कि आयोग संविधान की योजना के अंतर्गत विधायी प्रक्रिया में एक तीसरा सदन है. संविधान का एक अंग होने मात्र से उसे विधानमंडलों के बनाए गए कानून का संदर्भ लिए बिना अपनी इच्छानुसार कानून बनाने की पूर्ण शक्ति नहीं मिल जाती.'

संवैधानिक आधार पर दलीलें पेश करते हुए अभिषेक सिंघवी ने कहा, 'निर्वाचन आयोग इसकी आड़ में मूलभूत परिवर्तन कर रहा है...' एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324 (चुनावों का पर्यवेक्षण) को अनुच्छेद 327 के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से देखा जाना चाहिए, जो संसद को चुनावों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है.

अभिषेक सिंघवी ने जून 2025 में जारी किए गए एक फॉर्म पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें सत्यापन के लिए 11 से 12 विशिष्ट दस्तावेजों की आवश्यकता बताई गई थी, और पूछा, 'नियमों में इसका कहां उल्लेख है?' कपिल सिब्बल ने बृहस्पतिवार को अपना पक्ष रखते हुए बूथ स्तरीय अधिकारियों (BLO) की शक्तियों के दायरे पर सवाल उठाते हुए पूछा, 'क्या बीएलओ यह तय कर सकता है कि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से विक्षिप्त है या नहीं?'

कपिल सिब्बल ने कहा, 'नागरिकता निर्धारित करने के लिए एक स्कूल शिक्षक को बीएलओ के रूप में तैनात करना, मूल रूप से और प्रक्रियात्मक रूप से, एक खतरनाक और अनुचित प्रस्ताव है.' कपिल सिब्बल ने कहा कि लागू किए जा रहे नियम विदेशी (नागरिक) अधिनियम के नियमों जैसे ही हैं, जहां नागरिकता साबित करने का दायित्व व्यक्ति पर है कि वह विदेशी नहीं है. उन्होंने कहा, 'मैं यह दायित्व कैसे निभाऊंगा जब मेरे पिता ने 2003 की मतदाता सूची के तहत वोट नहीं दिया था या उनकी मृत्यु उससे पहले हो गई थी?'

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने इस पर कहा, 'लेकिन अगर आपके पिता का नाम सूची में नहीं है और आपने भी इस पर काम नहीं किया... तो शायद आप चूक गए...' बेंच 2 दिसंबर को सुनवाई फिर से शुरू करेगी.