कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने हाल के आतंकी हमलों के बाद कहा कि भारत के सामने आतंकवाद कोई ताजा चुनौती नहीं है. उनकी नजर में यह समस्या 30 सालों से लगातार देश का पीछा कर रही है. पहलगाम और नौगाम की घटनाओं के बाद उनका बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इस समय कश्मीर की सुरक्षा स्थिति पर देश में गंभीर चर्चा चल रही है और भारत-पाक रिश्तों पर भी नई बहस उठी है.

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थरूर ने कहा कि कश्मीर में उग्रवाद का उदय 1989–90 के आसपास हुआ था. उसी दौर में हिंसा ने घाटी की सामाजिक व्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया और आगे चलकर आतंकवाद ने कश्मीर की सीमाओं से निकलकर कई बड़े भारतीय शहरों को भी अपना निशाना बनाया.  थरूर ने कहा कि आतंकवाद का समाधान केवल जवाबी कार्रवाई तक सीमित नहीं हो सकता. सिक्योरिटी सिस्टम की मजबूती, खुफिया व्यवस्था की दक्षता और ऐसे कदम उठाना जरूरी है, जिनसे इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों. 

नौगाम धमाका, पहलगाम हमला और लाल किला विस्फोट

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नौगाम पुलिस स्टेशन में 14 नवंबर 2025 को हुआ विस्फोट पूरे देश को हिला देने वाला था. जांच टीम लाल किला कार बम मामले से बरामद किए गए विस्फोटक की जांच कर रही थी, तभी यह धमाका हुआ और कई लोगों की जान चली गई. यह घटना इस चिंता को बढ़ाती है कि आतंकियों के नेटवर्क की पहुंच कितनी दूर तक बन चुकी है और कौन-सी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में कमजोर पड़ रही है. इससे ठीक पहले अप्रैल में पहलगाम में हमला हुआ था. इसमें कोई शक नहीं कि कश्मीर में आतंकी गतिविधियां पूरी तरह समाप्त नहीं हुई हैं. इस संबंध में थरूर ने कहा कि आतंकवाद अतीत की कहानी नहीं बल्कि वर्तमान का सच है और ये बहुत मायने रखता है.

खुफिया एजेंसियों का बड़ा खुलासा

लाल किला कार बम मामले में खुफिया एजेंसियों ने एक बड़ा खुलासा किया है. हवाला के जरिए भेजे गए बीस लाख रुपये और तीन डॉक्टरों के बीच बने नेटवर्क ने इस साजिश की गहराई को उजागर किया है. जांच में यह बात सामने आई है कि इस धन का इस्तेमाल उर्वरक खरीदने जैसे कामों में किया गया, जिसे आगे जाकर विस्फोटक सामग्री में बदला गया. इस पूरे मामले ने यह साफ कर दिया है कि आतंकी संगठन न केवल संगठित हैं, बल्कि लगातार अपने तौर-तरीकों को बदलते जा रहे हैं.

फारूक अब्दुल्ला की अपील और थरूर की प्रतिक्रिया

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने हाल में यह कहा कि भारत और पाकिस्तान को रिश्तों में सुधार की दिशा में कोशिश रोकनी नहीं चाहिए. उनका यह कथन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस विचार की याद दिलाता है कि पड़ोसी बदले नहीं जा सकते. हालांकि, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब कश्मीर में आतंकी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही हो, तब क्या दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारना व्यावहारिक होगा. फारूक अब्दुल्ला की इस सोच पर प्रतिक्रिया देते हुए थरूर ने स्पष्ट कहा कि अभी जांच पूरी नहीं हुई है और ऐसे में किसी भी बड़े राजनीतिक निष्कर्ष पर पहुंचने की जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए.

युद्ध और शांति की बहस में बदलना सही नहीं

थरूर ने कहा कि हर घटना को युद्ध और शांति की बहस में बदलना उचित नहीं होता. आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ कार्रवाई जरूरी है, लेकिन इसके साथ-साथ राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

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