नई दिल्ली: दार्जिलिंग में चल रहे गोरखा आंदोलन का असर सिर्फ काम धंधे और टूरिज्म पर ही नहीं बल्कि पढ़ाई पर भी पड़ रहा है. स्कूल तो बंद है लेकिन असली परेशानी उनके लिए है जो यहां बोर्डिंग में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. हालांकि स्कूल में सारा इंतजाम है लेकिन आंदोलन के कारण चिंता जरूर है. बच्चों के माता-पिता भी दार्जिलिंग के बिगड़े हालात के कारण परेशान हैं. एबीपी न्यूज़ ने दार्जिलिंग के 129 साल पुराने सेंट जोसेफ स्कूल जाकर हालात का जायजा लेने की कोशिश की.



दार्जिलिंग में सेंट जोसफ स्कूल सबसे पुराना स्कूल है. यहां के प्रिंसिपल फादर शाजुमन ने बताया कि स्कूल में सब बच्चे सुरक्षित हैं किसी तरह की कोई दिक़्क़त नहीं है. स्कूल में बच्चों के खाने पीने के लिए दो महीने का स्टॉक है. लेकिन आंदोलन के चलते बच्चो की चिंता ज़रूर है. बच्चो के पेरेंट्स के फ़ोन आ रहे हैं. फादर ने बताया कि 23 तक बच्चों के एग्जाम है उसके बाद यहां से सुरक्षित बच्चों को निकालने के लिए ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स बात कर रहे हैं.



कोलकाता के रंजन बिस्वास 11वीं क्लास में स्कूल में पढ़ते हैं. उनका कहना है 'स्कूल में कोई दिक़्क़त नहीं है. प्रिंसिपल सर सब अरेंज कर रहे हैं.' कोलकाता के ही अवीक रॉय ने बताया कि सब अच्छा चल रहा है. पेरेंट्स निश्चिंत हैं.


स्कूल की मेस में सब बच्चे खाना खा रहे हैं. सभी को अच्छा खाना मिल रहा है. मेस सुपरवाइजर दीपू थापा ने बताया कि 'अगले दो महीने का खाना हमारे पास है.' नेपाल से पढ़ने आये एक छात्र ने बताया कि 'कोई दिक़्क़त नहीं हुई है लेकिन स्कूल में बम फेंका तो हम लोग डर गए. तो नेपाल के ही दूसरे छात्र ने बताया कि कोई दिक़्क़त नहीं सब अच्छा चल रहा है.



साल 1888 से स्थापित दार्जिलिंग के इस सेंट जोसेफ स्कूल में करीब 1100 छात्र पढ़ते हैं. जिसमें 520 छात्र देशभर के अलग अलग राज्यो समेत भूटान, नेपाल, बांग्लादेश एयर थाईलैंड से हैं. भूटान के मौजूदा नरेश जिग्मे खेसर के पिता समेत कई बड़ी हस्तियां इस स्कूल से पढ़ी हैं.