सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने याचिका दाखिल करके महिलाओं और लड़कियों के लिए दिशा-निर्देश बनाने का आग्रह किया है ताकि वर्कप्लेस पर मासिक धर्म के दौरान उनकी हेल्थ, गरिमा और उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन न हो. एससीबीए ने उस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है, जिसमें हरियाणा की महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी में महिला कर्मचारियों को इस बात का फोटोग्राफिक सबूत देने के लिए कहा गया कि उन्हें मासिक धर्म हो रहा है.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार एससीबीए ने अपील की है कि केंद्र और हरियाणा सरकार पूरे मामले की जांच करे. याचिका के अनुसार 26 अक्टूबर को हरियाणा के राज्यपाल का महर्षि दयानंद यूनवर्सिटी का दौरा था. ये कार्यक्रम रविवार को था और इसके लिए तीन महिला सफाई कर्मचारियों को आने के लिए कहा गया. महिला कर्मचारियों का कहना है कि सुपरवाइजर उनसे जल्दी-जल्दी काम करने के लिए कह रहे थे, जब उन्होंने बताया कि वे मासिक धर्म से हैं और उनकी तबीयत ठीक नहीं है तो उनसे इसका प्रूफ देने के लिए कहा गया. एससीबीए ने महिला कर्मचारियों की लिखित शिकायत का भी हवाला दिया है, जो उन्होंने यूनिवर्सिटी के रजिस्टरार को की है.
एससीबीए ने अपनी याचिका में कहा, 'यह बहुत दुखद बात है कि सुपरवाइजर्स ने महिला कर्मचारियों से फोटोग्राफिक प्रूफ मांगा. उनसे कहा गया कि वे सैनेट्री पैड का फोटो भेजें. इतना ही नहीं उनके साथ बदतमीजी भी की गई और उनको अपशब्द बोले गए और उन्हें तब तक प्रताड़ित किया गया जब तक कि उन्होंने फोटोग्राफ नहीं दिए.'
एससीबीए का कहना है कि इस तरह का ये कोई अकेला मामला नहीं है. एससीबीए ने द हिंदू की एक खबर का हवाला देते हुए कहा कि महाराष्ट्र के प्राइवेट स्कूल में भी ऐसा ही मामला देखा गया. यहां 5-10वीं क्लास की छात्राओं को कन्वेंशन हॉल में बुलाकर प्रोजेक्टर पर फोटो दिखाई गईं, जिनमें टॉयलेट में ब्लड स्टेन पड़ थे. इसके बाद छात्राओं को टॉयलेट में ले जाकर चेक किया गया कि वे मासिक धर्म से हैं या नहीं.
एससीबीए ने कहा कि ये घटनाएं संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन हैं, जो हर नागरिक को जीवन का अधिकार देता है. याचिका में कहा गया कि हर महिला कर्मचारी और खासतौर पर अनऑर्गेनाइज्ड वूमेन वर्कर्स को सभ्य कार्य स्थितियों का अधिकार है ताकि उन्हें मासिक धर्म के दौरान दर्द और बीमारी में अपमानजनक जांच का सामना न करना पड़े.