सीबीएसई, आईसीएसई और राज्य बोर्ड की 10वीं और 12वीं की ऑफलाइन परीक्षा के खिलाफ याचिका पर जल्द सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट को तैयार हो गया है. चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता को आश्वासन दिया है कि पिछले साल मामले की सुनवाई करने वाले जस्टिस ए एम खानविलकर की बेंच में यह मामला लगाया जाएगा. याचिकाकर्ता का कहना है कि कोविड के कारण बच्चों ने ऑनलाइन पढ़ाई की है. कोरोना का खतरा भी अभी खत्म नहीं हुआ है. इसलिए, बच्चों के मूल्यांकन का कोई और तरीका निकाला जाना चाहिए.


वकील और बाल अधिकार कार्यकर्ता अनुभा श्रीवास्तव सहाय की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया है कि समय से बच्चों का मूल्यांकन और नतीजों की घोषणा सभी शिक्षा बोर्ड का दायित्व है. लेकिन उन्होंने यह नहीं किया. अब सीबीएसई ने 26 अप्रैल से बोर्ड परीक्षा लेने की अधिसूचना जारी की है. कुछ और राज्य बोर्ड ने परीक्षा का कार्यक्रम घोषित किया है. लेकिन अधिकतर शिक्षा बोर्ड अभी भी इस पर चर्चा ही कर रहे हैं. बच्चों ने पूरे सत्र में ऑनलाइन पढ़ाई की है. कई बच्चों को तो इसका भी मौका नहीं मिला. अब उनसे फिजिकल तौर पर परीक्षा के लिए कहना सही नहीं है.


याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि कोरोना का खतरा अभी बना हुआ है। यह भी कहा जा रहा है कि यह बच्चों को अधिक प्रभावित कर सकता है. ऐसे में छात्रों से परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए कहना उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है. इस तरह की असामान्य परिस्थितियों में बिना उचित तैयारी के परीक्षा के लिए कहना तनाव बढ़ाएगा. यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी सही नहीं है.


याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट CBSE, ICSE, NIOS और राज्य शिक्षा बोर्ड को कमिटी बना कर बच्चों के मूल्यांकन का कोई वैकल्पिक तरीका निकालने को कहे. जो छात्र इस तरह के मूल्यांकन से मिले अंकों से संतुष्ट न हों, उन्हें अलग से परीक्षा देने का अवसर मिले. सभी बोर्ड से एक तय समय सीमा में सारी प्रक्रिया पूरी करने को कहा जाए. UGC से भी कहा जाए कि वह कॉलेज दाखिलों की व्यवस्था बनाते समय इन परिस्थितियों का ध्यान रखे. 12वीं पास करने वाले छात्रों को एप्टीट्यूड टेस्ट के माध्यम से या किसी और उचित तरीके कॉलेज में प्रवेश मिले.


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