हाई कोर्ट ने राज्य के सभी 26 जिलों में दंगों के दौरान क्षतिग्रस्त हुए धार्मिक स्थलों की लिस्ट बनाने को कहा था. याचिकाकर्ता इस्लामिक रिलीफ सेंटर की तरफ से दावा किया गया था कि ऐसे स्थलों की संख्या लगभग 500 है. जबकि राज्य सरकार का मानना है कि संख्या इससे बहुत कम है. उसकी ये भी दलील है कि उसे मुआवज़ा देने के लिए कहना गलत है.
सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार की तरफ से पेश वकील ने कहा था, "संविधान के अनुच्छेद 27 के तहत करदाता को ये अधिकार दिया गया है कि उससे किसी धर्म को प्रोत्साहन देने के लिए टैक्स नहीं लिया जा सकता. ऐसे में, धर्मस्थलों के निर्माण के लिए सरकारी ख़ज़ाने से पैसा देना गलत होगा."
उन्होंने आगे कहा कि गुजरात सरकार ने आधिकारिक तौर पर ये नीति बनाई हुई है कि वो धर्मस्थलों को हुए नुकसान की भरपाई नहीं करेगी. राज्य सरकार ने 2001 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हुए धर्मस्थलों के लिए भी कोई मुआवज़ा नहीं दिया था.
हाई कोर्ट में मामले की याचिकाकर्ता रही संस्था इस्लामिक रिलीफ सेंटर के वकील ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि धर्मस्थलों की सुरक्षा राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है. सरकार की गैरजिम्मेदारी से हुए नुकसान की उसे भरपाई करनी चाहिए.
इस्लामिक रिलीफ सेंटर के वकील ने कहा कि अनुच्छेद 27 का हवाला देना गलत है. भारत का संविधान धार्मिक भावनाओं को लेकर बहुत उदार है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रफुल्ल गोरड़िया बनाम भारत सरकार मामले में हज सब्सिडी को सही ठहराया था.
सुप्रीम कोर्ट में मामले को सुनने वाली बेंच के अध्यक्ष जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था, "अनुच्छेद 27 ऐसा नहीं कहता कि केंद्र या राज्य धार्मिक स्थलों की मदद के लिए कानून नहीं बना सकते." हालांकि, जस्टिस मिश्रा ने ये भी कहा कि अगर गुजरात सरकार ने धर्मस्थलों की मदद का कानून बनाया होता, तब भी मुआवजा नहीं देती तो बात दूसरी होती.
5 साल से लंबित इस मामले की सुनवाई इन 2 अहम सवालों पर रही है :-
पहला, अगर सरकार अपनी गैरजिम्मेदारी से धार्मिक स्थल को हुए नुकसान का मुआवज़ा देती है तो क्या इसे किसी धर्म को प्रोत्साहन देना माना जा सकता है?
दूसरा, अगर किसी बड़े कमर्शियल कॉम्पलेक्स को दंगाई तबाह कर देते हैं तो क्या उस नुकसान की भरपाई भी सरकार को करनी चाहिए? अगर ऐसा है तो इंश्योरेंस क्यों कराया जाता है?