अहमदाबाद के साबरमती आश्रम के पुनर्विकास के खिलाफ याचिका सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी का कहना था कि इससे साबरमती आश्रम की पवित्रता और सादगी प्रभावित हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में आए हाई कोर्ट के फैसले को इतनी देर से चुनौती देने पर सवाल उठाए. कोर्ट ने यह भी कहा कि गुजरात सरकार हाई कोर्ट में यह हलफनामा दे चुकी है कि आश्रम के मुख्य क्षेत्र का स्वरूप पहले जैसा बनाए रखा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम एम सुंदरेश और राजेश बिंदल की बेंच ने कहा कि उन्हें इस मामले में दखल की कोई ज़रूरत नहीं लगती है. समय के साथ हर जगह का विकास होता है. गांधीजी आश्रम के 5 एकड़ क्षेत्र में रहते थे. उसके स्वरूप को पहले जैसा बनाए रखने का गुजरात सरकार हाई कोर्ट को हलफनामा दे चुकी है.
तुषार गांधी के लिए पेश वकील कलीश्वरम राज ने कही ये बात तुषार गांधी के लिए पेश वकील कलीश्वरम राज ने कहा कि हाई कोर्ट ने गुजरात सरकार के हलफनामे को रिकॉर्ड पर लेते हुए केस का निपटारा कर दिया. लेकिन अगर इस हलफनामे का पालन नहीं हुआ, तो याचिकाकर्ता क्या करेगा? इस पर जजों ने कहा कि हम आशंकाओं के आधार पर सुनवाई नहीं करते. अगर हलफनामे का पालन नहीं हुआ, तब आप उचित कानूनी विकल्प अपना सकते हैं. गुजरात सरकार अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे महात्मा गांधी के आश्रम क्षेत्र का दोबारा विकास करना चाहती है. इस परियोजना के तहत आश्रम के 55 एकड़ क्षेत्र में फैली 48 जर्जर इमारतों को उनके मूल स्वरूप में लाया जाना है. तुषार गांधी ने 1200 करोड़ रुपए की इस परियोजना का हाई कोर्ट में विरोध किया था.
गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट से कही थी बात गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट को बताया था कि पूरे परिसर के मध्य क्षेत्र में जो 3 सबसे अहम इमारतें हैं, उन्हें छुआ भी नहीं जा रहा है. यह 3 इमारतें हैं- गांधी आश्रम, संग्रहालय और मगन निवास. हाई कोर्ट ने इस बयान को रिकॉर्ड पर लेते हुए मामले का निपटारा कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने पर उठाए सवाल सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2022 में आए हाई कोर्ट के फैसले को अब चुनौती देने पर भी सवाल उठाए. जजों ने पूछा कि याचिकाकर्ता कहाँ रहते हैं? वकील ने जवाब दिया कि वह मुंबई में रहते हैं. इस पर गुजरात सरकार के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता ज़्यादातर समय अमेरिका में रहते हैं. बीच-बीच में कुछ याचिका दाखिल कर देते हैं. इस पर कलीश्वरम राज ने कहा कि देरी का कारण याचिकाकर्ता की व्यक्तिगत व्यस्तता थी. परिवार में एक मृत्यु और एक विवाह के कारण वह समय पर याचिका दाखिल नहीं कर पाए. हालांकि, जज इस दलील से बहुत आश्वस्त तज़ार नहीं आए.
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