राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि भारत में रहने वाले मुसलमान और ईसाई अपनी पूजा और रीति-रिवाज के साथ देश में भक्ति करते हैं, भारत की संस्कृति को मानते हैं तो वे भी हिंदू ही हैं.

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मोहन भागवत सोमवार (17 नवंबर, 2025) को तीन दिवसीय यात्रा पर असम पहुंचे थे. यहां उनका बुधवार को एक युवा सम्मेलन को संबोधित करने का कार्यक्रम है. मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान यहां कहा, 'शिवाजी महाराज को सारे भारत में माना जाता है, राणा प्रताप को सारे भारत में माना जाता है. वह थे तो एक ही प्रांत के बुद्ध बिहार के थे, महावीर बिहार के थे, ये सर्वत्र मान्य है. क्योंकि वो हमारा गौरव का मुद्दा है, हमारा सबका सम्मान है. ऐसे जो लोग हैं, मातृभूमि की भक्ति, पूर्वजों का गौरव और हमारी इस संस्कृति की विरासत लेकर जो चलते हैं, वो सब हिंदू हैं.'

भागवत ने यहां प्रतिष्ठित हस्तियों के साथ बातचीत में दावा किया कि 'हिंदू' केवल एक धार्मिक शब्द नहीं है, बल्कि हजारों सालों की सांस्कृतिक निरंतरता में निहित एक सभ्यतागत पहचान है. उन्होंने कहा, 'भारत और हिंदू पर्यायवाची हैं. भारत को हिंदू राष्ट्र होने के लिए किसी आधिकारिक घोषणा की आवश्यकता नहीं है. इसकी सभ्यतागत प्रकृति पहले से ही इसे दर्शाती है.'

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उन्होंने कहा, 'हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति सिर्फ खान-पान और पूजा तक लिमिटेड नहीं है. वो इंक्लूसिव है और भी लोगों को अंदर ले सकती है. अपनी पूजा, रीति-रिवाज छोड़े बिना मुसलमान और ईसाई भी इस देश में भक्ति करते हैं, भारत की संस्कृति को मानते हैं और भारतीय पूर्वजों को मानते हैं तो वह हिंदू ही हैं.'

भागवत ने कहा कि आरएसएस की स्थापना किसी का विरोध करने या उसे नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने और भारत को वैश्विक नेता बनाने में योगदान देने के लिए की गई थी. उन्होंने कहा, 'विविधता के बीच भारत को एकजुट करने की पद्धति को आरएसएस कहा जाता है.'

भागवत ने असम में जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से जुड़ी चिंताओं से निपटने के लिए आत्मविश्वास, सतर्कता और अपनी भूमि और पहचान के प्रति दृढ़ लगाव का आह्वान किया.

उन्होंने अवैध घुसपैठ, हिंदुओं के लिए तीन बच्चों के मानदंड सहित एक संतुलित जनसंख्या नीति की आवश्यकता और विभाजनकारी धर्मांतरण का विरोध करने के महत्व जैसे मुद्दों पर बात की. उन्होंने खासकर युवाओं के बीच सोशल मीडिया के जिम्मेदाराना इस्तेमाल की भी वकालत की.'

पूर्वोत्तर को भारत की विविधता में एकता का एक बेहतरीन उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि लचित बोरफुकन और श्रीमंत शंकरदेव जैसी हस्तियां न केवल क्षेत्रीय महत्व रखती हैं, बल्कि राष्ट्रीय प्रासंगिकता भी रखती हैं और सभी भारतीयों को प्रेरित करती हैं. मोहन भागवत ने समाज के सभी वर्गों से राष्ट्र निर्माण के लिए सामूहिक और नि:स्वार्थ भाव से काम करने का आग्रह किया.