बिहार में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में अपमानजनक हार का सामना करने वाले विपक्षी खेमे महागठबंधन में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. राज्य में कांग्रेस और आरजेडी के 28 सालों के गठबंधन के टूटने को लेकर भी अटकलें तेज हो गई है. चुनावों में सत्तारूढ़ एनडीए ने 243 सदस्यीय विधानसभा में 200 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी है. बिहार चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस आलाकमान ने इस हफ्ते की शुरुआत में दिल्ली में समीक्षा बैठक की थी. इस बैठक में पहुंचे.

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अगल चुनाव लड़ना चाहती थी कांग्रेस

कांग्रेस के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा कि पार्टी नेताओं का एक वर्ग अपने पुराने, लेकिन प्रभावशाली सहयोगी आरजेडी के साथ गठबंधन करने के बजाय अकेले चुनाव लड़ने के पक्ष में था. पिछली विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान मुखर होकर ये बातें कर रहे हैं. उन्होंने कई न्यूज संस्थानों से कहा, “हमारे ज्यादातर उम्मीदवारों की यही राय थी कि अगर हमने आरजेडी के साथ गठबंधन न किया होता तो हम बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे. भविष्य की रणनीति क्या हो, यह पार्टी आलाकमान को तय करना है.”

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जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष शकील अहमद खान को कदवा विधानसभा क्षेत्र में चौंकाने वाली हार का सामना करना पड़ा, जहां से वह लगातार तीसरी जीत की उम्मीद कर रहे थे. यह सीट जदयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी ने जीती है, जो पिछले साल के आम चुनावों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारिक अनवर से कटिहार लोकसभा सीट हारने के बाद से राजनीतिक रूप से निष्क्रिय थे.

जंगल राज वाली छवि से हुआ कांग्रेस को नुकसान

कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि कई नेताओं का मानना ​​है कि सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का ‘जंगल राज’ का विमर्श, जो कथित तौर पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के बिहार में शासन के दौरान व्याप्त अराजकता को उजागर करने का प्रयास था, वो गठबंधन सहयोगियों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है.

इसके अलावा लालू प्रसाद यादव की ओर से संचालित पार्टी के साथ गठबंधन के बारे में कहा जाता है कि इससे ऊंची जातियां नाराज हो गई हैं, जो पहले कांग्रेस की समर्थक मानी जाती थीं और अब बीजेपी की ओर आकर्षित हो गयी हैं. आरजेडी को 5 साल पहले के 75 के मुकाबले मात्र 25 सीटें ही मिलीं हैं, लेकिन पार्टी ने कांग्रेस की राय पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

हार के बाद महागठबंधन में ब्लेम गेम

गठबंधन सहयोगी की नाराजगी की ओर ध्यान दिलाने पर आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल ने कहा, “अगर कांग्रेस अकेले चलना चाहती है तो उसे हर हाल में ऐसा करना चाहिए. उसे अपनी औकात पता चल जाएगी.” उन्होंने कहा, “कांग्रेस को जो भी वोट मिले हैं, वह आरजेडी की बदौलत हैं. राज्य में यह एक खत्म हो चुकी ताकत है. हम चुनाव दर चुनाव उनकी अनुचित मांगों को झेलते आ रहे हैं. 2020 में उन्होंने 70 सीटों पर चुनाव लड़ने पर जोर दिया और केवल 19 सीटें ही जीत सके. हाल के चुनावों में उनकी जीत की दर बेहद खराब रही है. फिर भी, अगर उन्हें लगता है कि अकेले चलना उनके लिए बेहतर है, तो उन्हें ऐसा जरूर करना चाहिए.”

महगठबंधन सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे की व्यवस्था भी चुनावों में सुचारू नहीं रही. आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के बीच लगभग 12 विधानसभा क्षेत्रों में फ्रेंडली फाइट हुआ. विपक्षी खेमे में व्याप्त भ्रम का भरपूर फायदा उठाने वाले बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अब इस राजनीतिक परिदृश्य पर तंज कसा.

बीजेपी का महागठबंधन पर तंज

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, “कांग्रेस और आरजेडी चुनाव के दौरान लड़ते रहे और अब भी लड़ रहे हैं. ऐसा होना ही था क्योंकि उनके गठबंधन का न तो कोई वैचारिक आधार है और न ही जनहित के मुद्दों पर कोई साझा प्रतिबद्धता. यह दरार और गहरी होने वाली है.”

इस विवाद के बीच गठबंधन सहयोगी सोमवार (1 दिसंबर 2025) से शुरू हो रहे विधानसभा के उद्घाटन सत्र से पहले एकता का दिखावा करने पर सहमत हो गए हैं. शनिवार को महागठबंधन की बैठक हुई जिसमें सभी गठबंधन सहयोगियों के विधायकों ने सर्वसम्मति से आरजेडी के तेजस्वी यादव को अपना नेता चुना. बैठक में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व एमएलसी और राज्य इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष समीर कुमार सिंह और उसके दो विधायकों ने किया. कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, शेष चार विधायक दिल्ली में थे जबकि बैठक पटना में हुई.

राहुल गांधी के पाले में गेंद

बिहार चुनाव में हार के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी को शुक्रवार (28 नवंबर 2025) एक रिपोर्ट सौंपी गई, जिसमें बताया गया है कि महागठबंधन को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की वजह से कितना नुकसान हुआ है. रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि संगठन में बड़ा फेरबदल करने की जरूरत है. इसकी शुरुआत राज्य स्तर से होगी.

इसमें ये भी कहा गया कि कांग्रेस को बिहार में सबसे बड़ा नुकसान आरजेडी के साथ चुनाव मिलकर चुनाव लड़ने पर हुआ है. बिहार में अपर क्लास, ओबीसी और ईबीसी के साथ अलग-अलग बैठक की जाएगी. राहुल गांधी यह सिलसिला जल्द शुरू करेंगे.