Religious Minorities: भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए कई संवैधानिक कदम उठाए जाते रहे हैं. अल्पसंख्यकों के जीवन में सुधार लाने के लिए भारत की ओर से बनाई जाने वाली नीतियों के चलते देश में अल्पसंख्यकों की स्थिति बेहतर होती जा रही है. ये कहना है ऑस्ट्रेलिया टुडे की एक रिपोर्ट का. वैश्विक स्तर पर अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर रिसर्च करने वाली संस्था सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस ने भारत को अल्पसंख्यकों के लिए एक बेहतरीन देश बताया है.


110 देशों को लेकर हुई रिसर्च में भारत ने नंबर एक पर अपनी जगह बनाई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्वीकार्यता सबसे अव्वल दर्जे की है. इस लिस्ट में साउथ कोरिया, जापान, पनामा भी शामिल हैं. भारत ने इस लिस्ट में टॉप करते हुए अमेरिका, ब्रिटेन और मुस्लिम देश यूएई को भी पछाड़ दिया है. 


रैंकिग में किन देशों को दी मात?


सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस (सीपीए) एक रिसर्च इंस्टीट्यूट है, जिसका भारत के पटना में हेडक्वार्टर है. इसकी रिपोर्ट में अमेरिका, मालदीव, अफगानिस्तान और सोमालिया में अल्पसंख्यकों के हालात सबसे बुरे हैं. इस लिस्ट में ब्रिटेन 54वें नंबर पर है. वहीं, खाड़ी देश यूएई 61वें नंबर पर है. रिपोर्ट में भारत ने इन तमाम देशों को पटखनी देते हुए नंबर एक की पोजिशन हासिल की है. 


रिपोर्ट में कैसे बना भारत नंबर-1?


सीपीए की इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अल्पसंख्यक नीति विविधता बढ़ाने के दृष्टिकोण पर आधारित है और इस पर जोर देती है. भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों को संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में कई अधिकार दिए गए हैं. धार्मिक अल्पसंख्यकों की उन्नति के लिए दिए गए ये अधिकार खासतौर से उन पर ही केंद्रित और स्पष्ट हैं. 


रिपोर्ट के मुताबिक, किसी अन्य संविधान में भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यकों को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत में किसी भी धार्मिक संप्रदाय पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है. इसके उलट पाकिस्तान जैसे देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं.


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