ओडिशा के रंजन साहू पिछले साल लॉकडाउन में हो गए थे बेरोजगार, अब अपने गांव में दे रहे 70 लोगों को रोजगार
पिछले साल साल मार्च में कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन में बड़ी संख्या में प्रवासी कामगारों को अपने घर लौटना पड़ा. ओडिशा के 40 वर्षीय रंजन साहू भी उनमें एक थे. वे कोलकाता की एक गारमेंट यूनिट में काम करते थे जो बंद हो गई और उन्हें गांव लौटना पड़ा. इसके बाद जनवरी में उन्होंनो गांव में कपड़े बनाने की यूनिट शुरू की और उसमें विभिन्न शहरों से लौटे 70 लोगों को रोजगार दे रहे हैं.
भुवनेश्वरः देश में कोरोना महामारी के कहर से कई लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी है. पिछले साल साल मार्च में महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन में बड़ी संख्या में प्रवासी कामगारों को अपने घर लौटना पड़ा. 40 वर्षीय रंजन साहू भी इनमें एक थे.लॉकडाउन के लगभग एक महीने बाद पिछले साल अप्रैल में कोलकाता की जिस गारमेंट यूनिट में रंजन साहू काम करत थे, वह बंद हो गई और उन्हें अपने गांव लौटना पड़ा.
साहू ने अपनी नौकरी गंवाने के बाद ओडिशा ने केंद्रपाड़ा जिले में अपने गांव गुंथी में अपनी कपड़े बनाने की यूनिट शुरू की. अपने गाव और आस-पास के गांवों के 70 युवाओं को नौकरी पर रखा था जो या तो महामारी के कारण अपनी नौकरी खो चुके थे या घर लौटने के लिए मजबूर हुए थे.
शहरों से गांव लौटे प्रवासियों को देखकर आया गारमेंट यूनिट शुरू करने का विचार
साहू ने एक एक न्यूजपेपर से बातचीत करते हुए कहा “मैं घर लौट आया और खाली बैठा था. कोई काम नहीं था. मेरे पास अपने और अपने परिवार के गुजारे के लिए सेविंग थी, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि मेरे आसपास बहुत सारे लोगों के पास पर्याप्त सेविंग नहीं थी और काम की तलाश में थे. मेरे गांव में बहुत से लोग केरल और सूरत से लौटे थे, जिन्होंने कपड़ा और गारमेंट इंडस्ट्री में काम किया था तभी मैंने अपने स्तर पर कुछ शुरू करने का फैसला किया और इस यूनिट को शुरू किया”
यूनिट में 70 लोगों को मिला रोजगार
भुवनेश्वर से लगभग 110 किलोमीटर दूर केंद्रपाड़ा जिले के पट्टामुंडई ब्लॉक के गुंथी में साहू ने अपनी पहली गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की स्थापना की. इस यूनिट में 45 सिलाई मशीनों लगी हैं और यह 3,000 वर्ग फुट में फैली हुई है. इस यूनिट में साल जनवरी से शुरू हुआ और नौकरियों गंवाने के कारण अपने पैतृक गांवों में लौट 70 लोगों को रोजगार मिला है. वे अब फॉर्मल शर्ट, टी शर्ट और ट्राउजर का प्रोडक्शन कर रहे हैं.
कई शहरों में 22 वर्षों तक गारमेंट इंडस्ट्री में किया काम
दसवीं कक्षा तक पढ़ने वाले साहू ने 18 साल की उम्र स्कूल छोड़ दिया था और अपने गांव के दूसरे लोगों की तरह की तलाश में ओडिशा छोड़ दिया. उन्होंने दिल्ली, बैंगलोर, कोलकाता, सूरत जैसे शहरों में और यहां तक कि नेपाल में लगभग 22 वर्षों तक गारमेंट इंडस्ट्री में काम किया. साहू के अनुसार, उन्होंने विभिन्न शहरों में ज्यादातर प्रोड्क्शन मैनेजर के रूप में काम किया. वे अब अपनी यूनिट के गारमेंट्स की डिमांड बढ़ने पर और ज्यादा लोगों को काम पर रखने की योजना बना रहे हैं.
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