नई दिल्ली: 2019 लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर पर सियासी बयानबाजी और खींचतान के बीच सुप्रीम कोर्ट में चार जनवरी को सुनवाई होगी. शीर्ष अदालत के रुख के बाद तय होगा कि सरकार राम मंदिर पर क्या कदम उठाती है. राम मंदिर को लेकर बीजेपी पर हिंदू वादी संगठनों, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और शिवसेना का दबाव है. सभी सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में हो रही देरी की दलील देते हुए संसद के माध्यम से कानून लाए जाने की मांग कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के मद्देनजर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने लखनऊ में बैठक बुलाई है. सूत्रों के मुताबिक, चार जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में जब राम मंदिर पर सुनवाई होगी तो सरकार केस की नियमित सुनवाई की मांग करेगी. कोर्ट में सरकार की ओर से कहा जा सकता है कि राम मंदिर मामले में जनभावनाओं को देखते हुए कोर्ट को इस मुकदमे की सुनवाई जल्द पूरी करनी चाहिए.
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29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जनवरी में सुनवाई करने का निर्णय लिया था. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में अयोध्या के विवादित स्थल के तीन हिस्से कर राम लला, निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम वादी में बांट दिया था. जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. हिंदूवादी संगठनों ने सीधा तौर पर सुनवाई में देरी का आरोप लगाया है.
पिछले दिनों बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक निजी टीवी चैनल को दिये इंटरव्यू में कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट में रोजाना इस मामले की सुनवाई हो, तो राम मंदिर का मसला 10 दिन में खत्म हो जाएगा. उन्होंने आगे कहा था, ''सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जो भी आए, देश के सभी लोग अयोध्या में राम मंदिर देखना चाहते हैं.''
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कुंभ और राम मंदिर अयोध्या में साधु-संत राममंदिर का मुद्दा अब अधिक जोर से उठाने वाले हैं. इसके लिए रणनीति भी तैयार की जा रही है. प्रयागराज में 31 जनवरी से लेकर एक फरवरी चलने वाली धर्म संसद में मंदिर मुद्दे पर निर्णायक फैसला होने की बात कही जा रही है.