हरियाणा के कुरुक्षेत्र में आयोजित इंटरनेशनल गीता महोत्सव में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने गीता पर अपने विचार रखे साथ ही ऑपरेशन सिंदूर में की गई भारतीय सेना की कार्रवाई का जिक्र किया. इस दौरान उन्होंने कहा, "हमने दुनिया को दिखाया कि भारत लड़ाई नहीं चाहता, लेकिन यदि मजबूर किया गया, तो भारत लड़ाई से भागता भी नहीं. भगवान कृष्ण ने भी पांडवों को यही समझाया था, कि युद्ध बदले की भावना या महत्वाकांक्षा के लिए नहीं, बल्कि धर्मपूर्ण शासन की स्थापना के लिए भी लड़ा जा सकता है. ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि वह भारत की आत्म-प्रतिबद्धता, आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास की उद्घोषणा थी"

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"ऑपरेशन सिंदूर धर्मयुक्त कर्म था"उन्होंने कहा, "श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में समझाया था. धर्म की रक्षा केवल प्रवचन से नहीं होती, उसकी रक्षा कर्म से होती है. ऑपरेशन सिंदूर वही 'धर्मयुक्त कर्म' था. हमने भगवान कृष्ण के संदेश का ही पालन किया. इस ऑपरेशन ने विश्व को संदेश दिया कि भारत आतंकवाद के विरुद्ध न तो मौन रहेगा और न ही कमजोर पड़ेगा. गीता केवल युगों की नहीं, बल्कि हर दिन और हर क्षण की साथी है. यदि हम इसे केवल धार्मिक ग्रंथ मानकर रख देंगे, तो इसका उद्देश्य अधूरा रह जाएगा."

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"भारत एक विराट कर्मभूमि"रक्षामंत्री ने कहा, "कर्म की भूमि केवल कुरुक्षेत्र नहीं है, आज का भारत भी एक विराट कर्मभूमि है, जहां सैनिक सीमा पर, वैज्ञानिक लैब्स में, किसान खेतों में और युवा स्टार्टअप में अपना–अपना धर्म निभा रहे हैं. गीता की असली शक्ति भी तभी प्रकट होगी, जब हम इसे अपने व्यवहार में, अपने निर्णयों में, अपने काम में और अपने संबंधों में लागू करते हैं. संघर्ष तो सबके जीवन में है. जीवन में संघर्षों का होना बुरा नहीं, संघर्ष से हार जाना बुरा है. जीवन के तमाम संघर्षों से निपटने की शक्ति हमें इस पवित्र ग्रंथ गीता से मिलती है. गीता हमें यह सिखाती है, कि जीवन केवल सांस लेने का नाम नहीं, बल्कि अपने धर्म, अपने कर्तव्य और अपनी जिम्मेदारियों को निर्भय होकर निभाने की साधना है."

"गीता हमें इमोशनल इंटेलिजेंस सिखाती है"उन्होंने कहा, 'गीता हमें Emotional Intelligence सिखाती है. ज्ञानी व्यक्ति न अत्यधिक दुखी होता है, न अत्यधिक प्रसन्न. वह सुख-दुख को समान भाव से देखता है. अच्छा कार्य करने पर संतोष तो करता है, पर उन्माद नहीं, यानि गीता की शिक्षाएं सत्य देखने की ओर लेकर जाने का कार्य करती हैं. जिस प्रकार कृष्ण ने अर्जुन को जगाया था, उसी प्रकार हम भी अपने भीतर के अर्जुन को जागृत करेंगे. यदि हम ऐसा कर पाए, तो न केवल हमारा जीवन सुधरेगा, बल्कि हमारा समाज, हमारा राष्ट्र और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इस ज्ञान से प्रकाशित होंगी.

"आत्मा न कभी जन्म लेती है न कभी मरती"उन्होंने कहा, "सरकार का काम आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी विकास करना तो होता ही है, लेकिन इसके साथ-साथ सांस्कृतिक विकास भी सरकार की एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है. गीता का पहला ही संदेश यह है, कि आत्मा न कभी जन्म लेती है न कभी मरती है. “न जायते म्रियते वा कदाचित्” यह श्लोक जीवन की अनिश्चितताओं के बीच हमें अद्भुत स्थिरता देता है. यह केवल युद्धभूमि का संवाद नहीं था बल्कि यह जीवन की हर परिस्थिति का मार्गदर्शन है."

उन्होंने कहा, "गीता कहती है, कि जीवन की व्यर्थ चिंताएं, विकृत भावनाएं और गलत धारणाएं तभी मिटती हैं, जब हम अपने भीतर के सत्य को पहचानते हैं. यही कारण है, कि आज के दौर में, जब डिप्रेशन और मानसिक तनाव जैसी चीजें तेजी से बढ़ रही हैं, गीता का संदेश लोगों को नया संबल देता है."

"मैनेजमेंट के लिए सबसे बड़ा ग्रंथ" उन्होंने कहा, "गीता महज एक ग्रंथ भर नहीं है, यह भारतीय मैनेजमेंट का सबसे पुराना और सबसे प्रभावी मॉडल है.लीडरशिप से लेकर किसी भी समस्या के समाधान तक हर जगह गीता का ज्ञान वास्तविक मदद करता है. जिस बात को आज दुनिया इतना प्रचारित करती है, वह बात श्रीकृष्ण ने पांच हजार वर्ष पहले बता दी थी, कि मनुष्य का व्यवहार उसके विचारों से बनता है और विचारों का शुद्धिकरण भक्ति और योग से होता है.आज दुनिया में गीता की स्वीकृति भी बढ़ती जा रही है. आज दुनिया के अनेक विश्वविद्यालयों में, गीता पर कोर्स पढ़ाए जा रहे हैं. यह भी अद्भुत है कि गीता केवल आध्यात्मिक या धार्मिक ग्रंथ नहीं रही, बल्कि एक यूनिवर्सल लाइफ गाइड बन चुकी है"

"शक्ति और शांति एकदूसरे के विरोधी नहीं"उन्होंने कहा, "गीता हमें यह भी सिखाती है, कि शक्ति और शांति एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं. आज भारत विश्व में शांति का संदेश देता है. पूरी दुनिया भारत को शांति का प्रतीक मानती है. परंतु वास्तविकता यह है कि शांति तभी टिकती है, जब उसके पीछे आत्मविश्वास और बल का सहारा हो."