Sangrur Farmers: पंजाब में पराली को आग लगाने के मामले हर दिन बढ़ रहे हैं. किसान पराली को आग लगाना अपनी मजबूरी बता रहे हैं. इससे पहले सरकार किसानों पर कार्रवाई न करने की बात बोल रही थी लेकिन अब आग लगने के मामले पर सरकार सख्त नजर आ रही है.
संगरूर में 201 किसानों पर 5 लाख 2500 का जुर्माना और उनकी जमीन के ऊपर रेड एंट्री की गई है. प्रशासन दावा कर रहा है कि जरूरत के अनुसार किसानों को सुपर सीडर मशीन उपलब्ध करवाया जा चुका है. इसके साथ पराली को आग लगाए बिना धान की बुवाई की जा सकती है.
आग लगाने वालो के खिलाफ कार्रवाईसंगरूर एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के ऑफिसर डॉ अमरजीत सिंह ने कहा, "कल तक संगरूर में लोकेशन सेटेलाइट के जरिए 2055 जगह ट्रेस हुई है. जेल में भी आग लगने की लोकेशन मिली है. अभी तक 2055 में से 700 से ज्यादा खेतों में जाकर देखा गया है. जहां सिर्फ 201 जगह पर ही आग लगी थी. 201 लोकेशन वाले किसानों पर 5 लाख 2500 जुर्माना किया गया है और उनके जमीनी रिकॉर्ड में रजिस्ट्री की गई है. जो 2000 से ज्यादा मामले सेटेलाइट के जरिए ट्रेस होते हैं वहां पर आग लगी होती है. जब ग्राउंड पर जाते हैं तो उसमें आग लगने का कारण कुछ और रहता है. जहां पर आग लगी पाई जाती है वहां पर एक्शन भी लिया जा रहा है."
संगरूर में सबसे ज्यादा अनाज पैदा होता हैसंगरूर में सबसे ज्यादा अनाज पैदा होता है. यहां पर 2 लाख 12000 हेक्टेयर के करीब खेती होती है. धान की खेती ज्यादा होती है तो सबसे ज्यादा मामले भी सामने आते है, लेकिन एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट दावा कर रहा है कि 5000 से ज्यादा मशीनें किसानों को उपलब्ध करवाई गई है. संगरूर के लहरागागा के भूटाल कला गांव में एक बायोगैस प्लांट भी लगाया गया है, जिसका हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री की ओर देश के केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने उद्घाटन किया गया था, लेकिन बायोगैस प्लांट के आसपास भी आग लगाई जा रही है.
वही मुख्यमंत्री दावा कर रहे थे कि जहां प्लांट लगा है उसके 30 किलोमीटर की एरिया के खेतों में से पराली की गांठ बनाकर फैक्ट्री में बायोगैस तैयार होगी. किसानों का कहना है कि मशीनें लाखों में आती है. उसको छोटे किसान नहीं खरीद सकते. पराली का समाधान है कि उनके खेत में से उठाया जाए लेकिन उसको भी उठाया नहीं जा रहा.
कई दिनों तक नहीं उठाते परालीकिसानों ने बताया कि धान की कटाई के बाद गेहूं की बिजाई के बीच में 10 से 15 दिन का समय होता है. किसानों के खेतों में से पराली नहीं उठा रहे. पराली उठाने के लिए ऐप पर रजिस्टर करना पड़ता है. धान की कटाई करने के बाद पराली में नमी देखी जाती है. पराली के सूख जाने के बाद गठ्ठे बनाते हैं फिर कई दिनों तक खेतों से उठाया नहीं जाता. इतनी देर में पराली के वजह से मिट्टी की नमी खत्म हो जाती है.
गेहूं की बिजाई का समय निकल जाने के वजह से मजबूरी में आग लगाते हैं. पराली का मामला राज्य सरकार की गले की हड्डी बना हुआ है. किसान और प्रशासन अपना तर्क रख रहे है लेकिन ग्राउंड रियलिटी में जमीन आसमान का फर्क है. किसान अपनी जगह सही है क्योंकि उसके पास पैसा नहीं है. सरकार पराली उठा नहीं रही है और ना ही प्राइवेट कंपनियां जिनके सरकार ने प्लांट लगाए हैं.