प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आज कौन नहीं जानता है. नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी और देश के कद्दावर नेता कहे जाते हैं और वो अपना 75वां जन्मदिन मना रहे हैं, लेकिन भाजपा में शामिल होने से पहले नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में लंबे समय तक सदस्य और विभिन्न पदों पर रह चुके हैं. आरएसएस के साथ मोदी के जुड़ाव के पीछे एक लंबी कहानी है, जिसके एक हिस्से में उन ‘वकील साहब’ का जिक्र आता है, जिन्होंने नरेंद्र मोदी की संघ में एंट्री कराई थी और नरेंद्र मोदी उस दौरान वकील साहब के कपड़े भी धोते थे.

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कौन थे वो वकील साहब?

नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में एंट्री दिलाने वाले वकील साहब और कोई नहीं, बल्कि लक्ष्मण राव ईनामदार थे, जिनका जन्म महाराष्ट्र के पूना में हुआ था. लक्ष्मण राव ईनामदार ने पूना यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की थी और आरएसएस में एक प्रचारक थे. इसीलिए संघ के कार्यकर्ता उन्हें वकील साहब कहकर पुकारते थे. महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर लगाया गया बैन 11 जुलाई 1949 को हटाया गया. बैन हटने के बाद गोलवलकर के नेतृत्व में संघ महाराष्ट्र से निकलकर दूसरे राज्यों में अपनी जड़ें जमाने लगी. इसी के तहत लक्ष्मण राव ईनामदार को गुजरात में संगठन के काम को आगे बढ़ाने का जिम्मा मिला.

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कैसे संघ में शामिल हुए पीएम मोदी?

साल 1958 में वकील साहब गुजरात के मेहसाणा जिले के एक छोटे कस्बे वडनगर के प्रवास पर थे, जहां उन्हें बाल स्वयंसेवकों को संघ के प्रति निष्ठा की शपथ दिलाने पहुंचे थे. उन बाल स्वयंसेवकों की लाइन में तब आठ साल के नरेंद्र मोदी भी शामिल थे.

....जब अहमदाबाद गए पीएम मोदी

12 सालों के बाद नरेंद्र मोदी वडनगर में अपना घर छोड़कर अहमदाबाद आ गए और अपने चाचा की कैंटिन में काम करने लगे. कुछ महीनों के बाद उन्होंने एक साइकिल खरीदकर उसी पर चाय बेचने का व्यवसाय शुरू किया. उन्होंने अपना पहला ठिया अहमदाबाद के गीता मंदिर के पास लगाया, जहां से संघ के प्रचारकों और स्वयंसेवकों का आना जाना होना था.

नरेंद्र मोदी ने खुद बताई ये बात

कुछ वक्त के बाद मोदी अहमदाबाद में रहने वाले संघ के राज्य स्तर के नेतृत्व के करीब आने लगे. वहीं, दिवंगत पत्रकार एमवी कामत ने नरेंद्र मोदी की जीवनी पर लिखे किताब में उनके हवाले से लिखा, ‘उस समय गुजरात के RSS मुख्यालय में 10-12 लोग रहते थे. वकील साहब ने मुझे वहां आकर रहने के लिए कहा. मैं वहां रोज सुबह प्रचारक और दूसरे कार्यकर्ताओं के लिए नाश्ता और चाय बनाता था, इसके बाद शाखा चला जाता. लौटने के बाद पूरे मुख्यालय में झाड़ू-पोछा लगाता. इसके बाद मैं अपने और ईनामदार साहब के कपड़े धोता था.’

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