नई दिल्ली: मुंबई का वर्ली इलाका कल तक आदित्य ठाकरे के पोस्टरों से पटा हुआ था लेकिन 24 घंटे के अंदर ही पोस्टर हटा लिए गए. पोस्टरों पर आदित्य की फोटो के साथ अगल-अगल भाषाओं में जनता से संवाद बनाने की कोशिश की गई थी. मराठी, हिंदी, गुजराती, तेलगू, ऊर्दू और अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में ये पोस्टर वर्ली इलाके में लगे हुए थे. इन पोस्टरों की सोशल मीडिया पर आलोचना शुरू हो गई और खासतौर से गुजराती पोस्टरों की.

आदित्य के विरोधियों ने इन पोस्टर को लेकर शिवसेना की जमकर आलोचना की. विरोधियों ने कहा कि गुजराती वोटरों को लुभाने के लिए शिवसेना अपनी उस आलोचना को भूल गई जिसमें वो ज्यादातर उद्योग धंधों के गुजरात जाने पर सवाल उठाती रही है. आलोचना के बाद पोस्टर हटवा दिए गए हैं. शिवेसना का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि किसने आदित्य ठाकरे ये पोस्टर वर्ली इलाके में लगाए हैं. लेकिन शिवसेना ने कहा कि ये पोस्टर उन्होंने नहीं लगाए. वर्ली के विधायक सुनील शिंदे ने कहा कि ये पोस्टर हमने नहीं लगाए, हो सकता है कि आदित्य के चाहनेवालों ने ये पोस्टर लगाए हो. लेकिन हमें इसकी सूचना नहीं है.

आपको बता दें कि 6 दशक में पहली बार ठाकरे घराने का कोई नेता चुनाव लड़ने जा रहा है. जिस वर्ली सीट से आदित्य लड़ रहे हैं वो पिछले 30 साल से शिवसेवा का गढ़ रही है. वर्ली सीट पर पिछले 6 में से 5 विधानसभा चुनाव शिवसेना ने जीते हैं. 1990 से 2004 तक शिवसेना के दत्ता नलावडे लगातार 4 बार वर्ली से विधायक रहे. 2009 में एनसीपी के सचिन अहीर जीते जो अब बीजेपी में शामिल हो गए. 2014 में फिर से शिवसेना ने वर्ली विधानसभा सीट पर कब्जा कर लिया.

इस सीट पर अब आदित्य ठाकरे चुनाव लड़ रहे हैं जो कल वर्ली से अपना पर्चा भरेंगे. आदित्य ठाकरे को पोस्टरों को लेकर आलोचना इसलिए भी हुई क्योंकि बाल ठाकरे ने अपनी राजनीति के शुरुआती दौर में दक्षिण भारतीय को विरोध किया. उस समय शिवसेना ने 'लुंगी उठाओ पुंगी बजाओ' का नारा दिया था. वहीं 2014 में गठबंधन टूटने के बाद मराठी बनाम गुजराती विवाद शुरु हुआ जो अब तक जारी है. ऐसे में शिवसेना का ये बदलाव उन्हें नुकासना पहुंचा सकता है. लेकिन वर्ली के निवासी ये मानते हैं कि शिवसेना ना बदली है ना वोटों के लिए बदलेगी.