मोदी कैबिनेट में फेरबदल के बाद दो चेहरों का जाना सबको चौंका रहा है. कुछ का कद क्यों बढ़ा ये हम आपको पहले बता चुके हैं. मगर कुछ लोगों का मंत्रिमंडल से बाहर जाना तो अप्रत्याशित है ही, लेकिन कुछ का कद घटना भी लोगों के दिमाग में फितूर पैदा कर रहा है. तमाम बातें हैं और तमाम कयास. राज की बात में हम आपको बताएंगे कि मोदी के कैबिनेट फेरबदल में कद घटने-बढ़ने और आने-जाने के मायने क्या हैं कुछ राजनीतिक हैं, कुछ सामाजिक समीकरण से हैं, लेकिन कई लोगों के जाने या कद कम होने के पीछे सिर्फ उनका काम नहीं, बल्कि भविष्य की रणनीति और उनका रवैया भी है.


राज की बात में पहले चर्चा उन दो चेहरों की, जिनकी विदाई से सब स्तबध रह गए. इनमें पहला नाम है कानून और आईटी जैसे भारी-भरकम दो मंत्रालयों का प्रभार देखने वाले रविशंकर प्रसाद का. रविशंकर प्रसाद सरकार के प्रवक्ता भी थे. कोई भी मुद्दा हो, उस पर संसद से लेकर बाहर बात रखने का काम वो करते थे. माना जा रहा है कि ट्विटर विवाद के चलते उनकी विदाई हो गई, लेकिन ये आंशिक सच है. शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि इस मसले को और ज्यादा संजीदा तरीके से संभाला जा सकता था. हालांकि, कानून के जानकार और आईटी मंत्री होने के नाते सब कुछ रविशंकर ही कर रहे थे और उन्होंने ट्विटर की घेराबंदी बहुत जोरदार तरीके से कर दी थी.


राज की बात ये है कि केंद्र सरकार भी ट्विटर पर लगाम लगाने के पक्ष में है. मगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और खासतौर से अमेरिका की मौजूदा जो बाइडेन सरकार जैसे ट्विटर के पक्ष में है, उसको लेकर भारत को भी संजीदा रुख अपनाना है. जो बाइडेन प्रशासन से ऐसे समय में जबकि पाकिस्तान और चीन अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा, कहीं से भी उचित फैसला नहीं हो सकता था. फिर निवेशकों पर भी असर पड़ना था. इसलिए ट्विटर को कानून के घने जंगल में छोड़कर उसे अपने ही जाल में फंसने देगी सरकार, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी की कीमत पर नहीं. रविशंकर प्रसाद इस सच्चाई को शायद समझने में नाकाम रहे.


रविशंकर प्रसाद की तरह ही सूचना प्रसारण और पर्यावरण मंत्रालय देख रहे प्रकाश जावडेकर भी सरकार के खिलाफ बन रहे राजनीतिक विमर्श या माहौल को रोकने में नाकाम रहे. दोनों ही नेता सरकार का चेहरा थे और प्रवक्ता भी. मोदी सरकार फीडबैक के आधार पर काम करने वाली सरकार है. मगर इनके विभाग बदलने के बजाय हटाया क्यों गया. क्योंकि संदेश तो विभाग बदल कर या कम कर भी दिया जा सकता था.


राज की बात ये है कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण था कि पूर्व बीजेपी दिग्गज अरुण जेटली जो कि बीजेपी का बौद्धिक चेहरा थे, उनके निधन के बाद दोनों नेताओं ने उस जगह के लिए खुद को खड़ा किया. खासतौर से रविशंकर प्रसाद जो कि जेटली की तरह वकील भी थे, उन्होंने लुटियन दिल्ली का चेहरा बनने की कोशिश की. जावडेकर के लिए भी यही फीडबैक पीएमओ को गया. इसलिए इनकी सरकार से विदाई हुई, लेकिन संगठन में इनका उपयोग किया जाएगा. संसदीय बोर्ड के दो पद खाली हैं, उनमें इनको जगह देकर पार्टी के स्तर पर जिम्मेदारी दी जाएगी.


इसके अलावा डा हर्षवर्धन को स्वास्थ्य और रमेश पोखरियाल निशंक को एचआरडी से हटाकर भी मोदी ने सीधा संदेश दिया कि काम से कोई समझौता नहीं. हर्षवर्धन को वैसे दिल्ली में चेहरा बनाने की भी तैयारी है, लेकिन मुख्य वजह तो प्रदर्शन ही रहा. राज की बात ये कि निशंक से उम्मीद थी कि मोदी की महत्वकांक्षी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सही तरीके से लागू करना. इसके विपरीत निशंक का कार्यकाल विवादों और टालामटोली में ही बीता. कुलपतियों के चयन तक में पीएमओ को हस्तक्षेप कर कुछ फाइलें वापस करनी पड़ीं. इसीलिए, यहां पर धर्मेंद्र प्रधान को लाया गया जो कि अखिल भारती विद्यार्थी परिषद से है और चुपचाप काम करने के लिए जाने जाते हैं. मतलब ये कि राष्ट्रीय विमर्श में असफलता के चलते इन चारों लोगों की विदाई हुई.


हालांकि, कामकाज के लिहाज से सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले नितिन गडगरी से लघु उद्योग ऐसे समय में छीनकर नारायण राणे को दिया गया है, जबकि गडकरी वहां पर काफी तेजी से काम कर रहे थे. गडकरी से जहाजरानी भी लेकर उनका कद तो थोड़ा कम करने की कोशिश जरुर दिख रही है. वहीं पीयूष गोयल से रेल मंत्रालय लिया गया और जबकि उन्हें वित्त भेजने की चर्चा भी थी, ऐसा नहीं हो सका. जाहिर है कि पीयूष के प्रदर्शन से मोदी संतुष्ट नहीं थे और संघ की नाराजगी भी एक कारण थी. हालांकि, शाह के विश्वस्त गोयल को स्मृति ईरानी से कपड़ा मंत्रालय लेकर जरूर भरपाई की कोशिश की गई. माना जा रहा है कि स्मृति को पश्चिम बंगाल में ममता के सामने जूझने के लिए मंत्रालयों के भार से मुक्त किया जा रहा है.


राज की बात ये है कि कामकाज के साथ जातीय संतुलन बैठाने में मोदी-शाह ने पूरा गणित भिड़ाया है. 43 नए मंत्रियों में 27 ओबीसी, 12 एससी और आठ एसटी मंत्रियों को शामिल कर सवर्णों की पार्टी होने के विपक्ष की तरफ से स्थापित किए जा रहे विमर्श को धराशायी कर दिया है. खासतौर से चुनाव में जाने वाले यूपी में यह गणित ज्यादा ही सटीक रखा गया है. मसलन मोहनलगंज से सांसद कौशल किशोर को मंत्री बनाकर मोदी ने बड़ा संदेश दिया है. कौशल वो सांसद हैं जिन्होंने यूपी के सीएम योगी पर कोरोना के दौरान खुलकर सवाल उठाए थे. जाहिर है कि उन्हें मौका देकर उन सवालों को तो सही साबित ही किया गया, साथ ही ये भी बताया कि सरकार में सबकी सुनी जाती है. सबसे बड़ा संदेश ये कि विरासत या क़द के आधार पर मोदी सरकार में कोई पद नहीं मिलेगा.