संसद के शीतकालीन सत्र में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार (8 दिसंबर, 2025) को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् पर चर्चा की. उन्होंने कहा, “आज जब वंदे मातरम् के 150वें वर्ष का उत्सव मना रहे हैं तो ये सच स्वीकार करना होगा कि जो न्याय होना चाहिए था वो नहीं हुआ. आज आजाद भारत में राष्ट्रगान-राष्ट्रगीत को बराबर का दर्जा मिलना चाहिए था, जिसमें से एक तो मुख्यधारा में स्थान पा गया, लेकिन दूसरे गीत को खंडित, हाशिए पर कर दिया गया. उसे एक एक्स्ट्रा के तौर पर देखा गया.”
लोकसभा में राजनाथ सिंह के संबोधन के दौरान किसी सदस्य ने उन्हें बीच में टोका तो इस पर रक्षा मंत्री भड़क गए और उन्होंने जमकर फटकार भी लगाई. उन्होंने कहा, “1937 में कांग्रेस ने गीत को खंडित करने का फैसला लिया था, वंदे मातरम् के साथ राजनीतिक छल और अन्याय के बारे में सभी पीढ़ियों को जानना चाहिए. अब वंदे मातरम का गौरव लौटाना समय की मांग है और नैतिकता का तकाजा भी. इस अन्याय के वावजूद वंदे मातरम का महत्व कम नहीं हो पाया. ये जीवन स्वरूप बन गया.”
वंदे मातरम राष्ट्रीय भावना का अमरगीत बना- राजनाथ
लोकसभा में राजनाथ सिंह ने कहा, “वंदे मातरम स्वयं में पूर्ण है, लेकिन इसे अपूर्ण बनाने की कोशिश की गई. राष्ट्रीय भावना का अमरगीत बना है और ये सदैव बना रहेगा, कोई ताकत इसे कम नहीं कर सकती है. वंदे मातरम के साथ हुआ अन्याय एक अलग घटना नहीं थी, ये तुष्टीकरण की राजनीति थी, जिसे कांग्रेस ने अपनाया और राजनीति ने देश का विभाजन कराया और आजादी के बाद सांप्रदायिक सौहार्द पर एकता को कमजोर किया.”
उन्होंने कहा, “आज हम वंदे मातरम की गरिमा को पुर्नस्थापित कर रहे हैं, लेकिन कुछ लोग ये नैरेटिव बनाने की कोशिश कर सकते हैं कि वंदे मातरम और जन गण के बीच एक दीवार खड़ी की जा रही है, ऐसा प्रयास विभाजनकारी मानसिकता का परिचय देता है. वंदे मातरम और जन गण मन मां भारती के दो सपूतों की किलकारियां हैं, दो आंखे हैं. वंदे मातरम और जन गण मन दोनों ही राष्ट्रीय गौरव है.”
कुछ लोगों को आनंदमठ सांप्रदायिक लगा- राजनाथ
उन्होंने कहा, “जो लोग ना सभ्यता के मूल को समझते हैं, जो लोग ना संस्कृति के महत्व को स्वीकारते हैं, जिन्होंने परंपराओं को दरकिनार, वो लोग ना पहले समझ सके थे, ना अब समझ पा रहे हैं. वर्षगांठ का ये उत्सव दिखावा नहीं, ये प्रण है वंदे मातरम को उचित सम्मान दिलाने का. आज हमें इस गलती को सुधारना होगा. राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्ति दिलानी होगी. कुछ लोगों को आनंदमठ सांप्रदायिक लगा.”
उन्होंने कहा, “वंदे मातरम और आनंदमठ कभी भी इस्लाम के खिलाफ नहीं था. वंदे मातरम की ये पंक्तियां सांप्रदायिक और राजनीतिक लगे, क्योंकि वो जिन्ना के चश्मे से देख रहे थे, वंदे मातरम की ये पंक्तियां भारत की आत्मा का प्रतीक है.”