संसद में वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा चल रही है. लोकसभा में सोमवार (08 दिसबंर, 2025) को पीएम मोदी के भाषण से बहस की शुरुआत हुई, जिसका जवाब कांग्रेस की ओर से डिप्टी लीडर गौरव गोगोई और प्रियंका गांधी की ओर से दिया गया. इसी बहस के दौरान शिवसेना यूबीटी के सांसद अरविंद सावंत ने वंदे मातरम् के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी से जुड़ी साल 1873 की एक घटना का जिक्र किया, जिसने उन्हें बागी बना दिया था.
अरविंद सावंत ने बंकिम चंद्र से जुड़ा किस्सा याद किया, जब एक अंग्रेज अधिकारी ने उन्हें अपमानित किया था. सांसद ने इस घटना का उदाहरण यह बताने के लिए दिया कि स्वाभिमान और आत्मसम्मान के लिए लड़ना ही सच्ची राष्ट्रभक्ति है. शिवसेना यूबीटी सांसद ने ये किस्सा तो सुनाया, लेकिन हम आपको विस्तार से इसके बारे में बताते थे कि क्यों एक मामूली सी कहासुनी ब्रिटिश हुकूमत के लिए नाक का सवाल बन गई थी और कैसे इस घटना ने वंदे मातरम् की नींव रख दी.
मुर्शिदाबाद में डिप्टी मजिस्ट्रेट थे बंकिम चंद्र
यह घटना 15 दिसंबर, 1873 की है. उस समय बंकिम चंद्र केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि ब्रिटिश सरकार में अधिकारी भी थे. वह मुर्शिदाबाद जिले के बहरामपुर में डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात थे. भले ही पद ऊंचा हो, लेकिन उस समय 'काले' (भारतीय) और 'गोरे' (अंग्रेज) का भेदभाव बहुत ज्यादा था. अंग्रेजों के लिए वह समय उगता हुआ सूरज था. दुनियाभर में उनकी तूती बोल रही थी. उनकी नजर में कोई भी भारतीय कितना भी पढ़ा-लिखा क्यों न हो, उसे वो अपमानित ही करते थे. बंगाल के बहरामपुर छावना इलाका उस समय अंग्रेजों का गढ़ था, जहां उनके ही नियम-कायदे चलते थे.
कर्नल डफिन ने बंकिम को पालकी से उतारा
बंकिम चंद्र पालकी में बैठकर अपने काम से लौट रहे थे. सर्दियों की दोपहर थी. जब उनकी पालकी बहरामपुर के 'लालदीघी मैदान' के पास से गुजर रही थी, उस समय मैदान में अंग्रेज सैनिक क्रिकेट खेल रहे थे. इनमें लेफ्टिनेंट कर्नल डफिन भी था, जो बहरामपुर छावनी का कमांडिंग ऑफिसर था. जैसे ही बंकिम चंद्र की पालकी मैदान के करीब पहुंची, कर्नल डफिन आग-बबूला हो गया. दरअसल अंग्रेजों ने नियम बनाया हुआ था कि अगर कोई अंग्रेज सामने हो तो भारतीय अपनी सवारी से उतरकर सम्मान प्रकट करें या अपना रास्ता बदल लें. जब बंकिम ने ऐसा कुछ नहीं किया तो अंग्रेज जलभुन गए. डफिन अपना खेल रोककर गुस्से में दौड़कर आया और उसने पालकी रुकवा दी.
अंग्रेज अधिकारी डफिन ने न सिर्फ पालकी रुकवाई बल्कि जो लोग पालकी में बंकिम चंद्र को लेकर चल रहे थे, उनको गालियां भी दीं. इतना ही नहीं अंग्रेज कर्नल ने बंकिम चंद्र को पालकी से उतारकर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया और धक्का देने की कोशिश की. उसने दुनिया के जाने-माने साहित्यकार बंकिम को उस दिन तो रास्ता बदलने पर मजबूर कर दिया, लेकिन इस अपमान ने बंकिम चंद्र के अंदर एक बैचेनी पैदा कर दी. जो जिले में लॉ एंड ऑर्डर संभालता हो, उसे इस तरह अपमानित किया जाए, ये तो शायद ही किसी को सहनीय हो. हालांकि उस दिन बंकिम चंद्र खामोश रहे, लेकिन डफिन को उसकी गलती एहसास कराने का ठान लिया.
बंकिम चंद्र ने कर्नल डफिन के खिलाफ दर्ज करा दिया केस
उस दौर में ऐसे कई वाकिया सामने आते थे, लेकिन भारतीय अधिकारी अपना अपमान पी जाते थे क्योंकि उन्हें नौकरी जाने का डर रहता था, लेकिन बंकिम चंद्र ने अगले ही दिन कर्नल डफिन के खिलाफ अदालत में आपराधिक मामला दर्ज करा दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि डफिन ने उन पर सार्वजनिक अपमान किया और साथियों के साथ मिलकर हमला भी किया. यह खबर काफी तेजी से जिले और आसपास के जिलों में फैल गई कि एक भारतीय डिप्टी मजिस्ट्रेट ने अंग्रेज कर्नल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है.
यह मामला जिले के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट मिस्टर विंटर के पास पहुंचा. विंटर बखूबी जानते थे कि अगर ये मामला आगे बढ़ा तो इसमें ब्रिटिश हुकूमत की बदनामी होगी और गोरे अफसर को काले मजिस्ट्रेट के सामने कटघरे में खड़ा होना पड़ेगा, जो उन्हें मंजूर नहीं था. मिस्टर विंटर ने बंकिम चंद्र पर दबाव बनाया कि वह केस वापस ले लें. उन्होंने कहा, 'कर्नल डफिन आपको पहचानते नहीं थे, उन्हें लगा कि आप कोई आम आदमी हैं.' बंकिम ने विंटर को जवाब दिया कि सवाल यह नहीं है कि वे कौन हैं. सवाल यह है कि क्या किसी आम भारतीय को भी इस तरह अपमानित करने का अधिकार किसी अंग्रेज अधिकारी को है? उन्होंने केस वापस लेने से साफ इनकार कर दिया.
जब भरी अदालत में कर्नल डफिन ने मांगी बंकिम से माफी
12 जनवरी 1874 को बहरामपुर की अदालत खचाखच भरी हुई थी. हजारों की भीड़ बाहर जमा थी. हर कोई देखना चाहता था कि क्या अंग्रेज जज अपने ही देश के कर्नल को सजा देगा? अदालत ने गवाहों को बुलाया. बंकिम चंद्र ने अपने पक्ष में कई स्थानीय लोगों और यहां तक कि कुछ अन्य अधिकारियों की गवाही भी तैयार रखी थी. मामला शीशे की तरह साफ था- डफिन दोषी थे. जज भी मिस्टर विंटर ही थे, जो बंकिम पर दबाव बना रहे थे. हालांकि उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा कि कर्नल डफिन से कहा कि कानून सबके लिए बराबर है और उनका व्यवहार गलत था. विंटर ने डफिन को सलाह दी कि वे खुली अदालत में माफी मांग लें, अन्यथा कानून अपना काम करेगा. खुद को घिरता देख कर्नल डफिन का अहंकार टूट गया. भरी अदालत में, सैकड़ों भारतीयों के सामने लेफ्टिनेंट कर्नल डफिन ने बंकिम चंद्र चटर्जी से औपचारिक रूप से माफी मांगी. यह उस समय की बहुत बड़ी घटना थी.