नई दिल्ली: संसद में पहले दिन ही किसानों के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष आमने सामने आ गए. वजह बने तीन विधेयक जिसे सरकार की ओर से लोकसभा में पेश किया गया. ख़ासकर तौर पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ओर से पेश किए गए दो बिलों को पेश करने का कड़ा विरोध हुआ. पहला बिल कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) बिल 2020 के नाम से पेश हुआ. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस बिल को पेश करने का इस आधार पर विरोध किया कि संविधान के मुताबिक़ इस मामले पर क़ानून बनाने का अधिकार केवल राज्य सरकारों को है. हालांकि कृषि मंत्री ने अधीर रंजन के विरोध को सिरे से नकार दिया.

इस बिल का सबसे अहम प्रावधान ये है कि किसानों को अपना उत्पाद राज्य सरकार द्वारा कृषि उत्पाद बाज़ार क़ानून के तहत तय की गई मंडी में ही ले जाकर बेचने की बाध्यकता नहीं होगी. फ़िलहाल किसान अपने उपज को अपने मंडी क्षेत्र से बाहर नहीं बेच सकता. इसमें ' वन नेशन वन मार्केट' की तर्ज़ पर किसानों को अपनी उपज किसी भी राज्य में ले जाकर बेचने की आज़ादी होगी. इससे कृषि उपज का बाधा मुक्‍त अंतरराज्यीय व्‍यापार संभव हो सकेगा.

विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस बिल के ज़रिए APMC क़ानून ( कृषि उत्पाद बाज़ार क़ानून ) को ख़त्म करना चाहती है, जो सीधे तौर पर राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है. हालांकि कृषि मंत्री ने लोकसभा में साफ़ किया कि नया बिल APMC क़ानून के तहत बनी मंडियों के बाहर होने वाले ख़रीद फरोख्त के लिए है न कि मंडी के भीतर के. मंडी के भीतर ख़रीद बिक्री पहले की तरह जारी रहेगी.

हालांकि विपक्ष का असल विरोध आज पेश किए गए दूसरे बिल को लेकर है, जिसका नाम किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा बिल, 2020 है. पहला और दूसरा बिल एक दूसरे का पूरक है. सरकार का कहना है कि पहला बिल अगर किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने की आज़ादी देता है तो दूसरा बिल इस ख़रीद बिक्री के दौरान किसानों को धोखाधड़ी और शोषण से बचाने के लिए एक कानूनी कवच.

सरकार के मुताबिक़ बिल का मक़सद किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाने के लिए सीधे मिलों, निर्यातकों और खाद्य संस्करण में लगे व्यापारियों के साथ दाम तय करने का अधिकार देना है. इससे कृषि उपज के सप्लाई चेन में निजी क्षेत्र की भागीदारी करने का रास्ता खुलेगा.

हालांकि न सिर्फ़ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को, बल्कि देश के कई किसान संगठनों को इस बिल से किसानों को मिलने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी को खत्म किए जाने का अंदेशा है. बिल को पेश करने के दौरान अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि इस बिल से किसानों को मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़तरा पैदा हो जाएगा. हालांकि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इस बात को सिरे से ख़ारिज़ करते हुए कहा कि एमएसपी पहले की तरह ही जारी रहेगा.

इन बिलों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने शंका जताई है कि सरकार के इस क़दम से प्राइवेट कंपनियों को किसानों के शोषण का मौक़ा मिलेगा, क्योंकि छोटा और मध्यम दर्ज़े का किसान बड़ी बड़ी कम्पनियों और व्यापारियों के आगे उचित दाम की मांग नहीं कर सकेगा.

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