ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि अपने रहस्यों और परंपराओं के लिए भी विख्यात है. यह मंदिर अपने चमत्कारों, भव्य रथ यात्रा और अनगिनत कहानियों के लिए जाना जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि मंदिर की दो ऐसी परंपराएं हैं, जिनका अनुपालन यदि गलती से भी न किया जाए तो यह मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो सकता है?
जगन्नाथ पुरी मंदिर की सबसे पवित्र परंपराओं में से एक है नीति चक्र के अनुसार महाप्रसाद की नित्य अग्नि जलाना. इसे आकाशीय अग्नि भी कहा जाता है, जो प्रतिदिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए भोग पकाती है. यह अग्नि सदियों से कभी नहीं बुझी और इसे देव अग्नि का स्वरूप माना जाता है.
मंदिर में भोग पकाने की प्रक्रिया में भी छिपा है रहस्य
मंदिर की रसोई में सात मिट्टी के बर्तनों में भोग पकता है, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि इसमें सबसे नीचे बर्तन में रखा भोग सबसे देरी से और सबसे ऊपर रखा हुआ भोग सबसे पहले पकता है. मान्यता है कि यदि यह अग्नि किसी कारणवश बुझ जाए तो मंदिर को अपवित्र मानते हुए 18 साल तक भक्तों के लिए बंद करना पड़ता है. इस दौरान मंत्रोच्चार, अनुष्ठान और विशेष यज्ञों के जरिए मंदिर को पुनः शुद्ध किया जाता है.
हवा के विपरीत दिशा में लहराता है जगन्नाथ मंदिर का पतित पावन झंडा
इसके अलावा, पटकासी सेवा भी जगन्नाथ मंदिर की अहम परंपरा है. मंदिर की चोटी पर लगा पतित पावन झंडा प्रतिदिन पुजारियों की ओर से बदला जाता है. यह झंडा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है, जिसे श्रद्धालु भगवान का चमत्कारी संकेत मानते हैं. 215 फीट ऊंचाई पर बिना किसी सुरक्षा के पुजारियों की ओर से झंडा बदलने की यह अनोखी परंपरा सदियों से निभाई जा रही है.
इन दो परंपराओं की अखंडता बनाए रखना मंदिर की शुद्धता और जीवंतता के लिए अनिवार्य है. इसे बारिश या तूफान में भी निभाया जाता है. इनकी निरंतरता ही मंदिर की दिव्यता और श्रद्धालुओं की आस्था को बनाए रखती है. यही कारण है कि पुरी का जगन्नाथ मंदिर न केवल भव्यता और आस्था का केंद्र है, बल्कि अपने अनुशासन और रहस्यमयी परंपराओं के लिए भी अद्वितीय है.
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