नई दिल्ली: अगस्ता वेस्टलैंड सौदे से जुड़े मामले में ऐसा माना जा रहा है कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की अदालत ने कथित बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल को भारत को प्रत्यर्पित करने का कोई आदेश नहीं दिया है. आधिकारिक सूत्रों ने बीती रात कहा था कि दुबई की एक अदालत ने 3,600 करोड़ रुपये के अगस्तावेस्टलैंड वी वी आई पी हेलीकॉप्टर सौदा मामले में मिशेल के प्रत्यर्पण का आदेश दिया है.

अदालत ने सिर्फ अपना मत दिया था

सीबीआई ने बुधवार को कहा कि वह वह यू ए ई से मिशेल के प्रत्यर्पण संबंधी खबरों पर विदेश मंत्रालय की पुष्टि की प्रतीक्षा कर रही है. यहां उपलब्ध ब्योरे के अनुसार यूएई सरकार ने दो सितंबर को दुबई की एक अदालत के समक्ष सवाल उठाया था कि क्या किसी ब्रिटिश नागरिक को किसी तीसरे देश को प्रत्यर्पित किया जा सकता है. इस पर अदालत ने मत दिया था.

भारत को भी कोई आधिकारिक संदेश नहीं मिला- सूत्र सूत्रों ने कहा कि ऐसा माना जाता है कि अदालत ने मिशेल को भारत को प्रत्यर्पित करने का कोई आदेश नहीं दिया जैसा कि खबरों में आया. ऐसी खबरें थीं कि दुबई की एक अदालत ने मिशेल को भारत को प्रत्यर्पित करने का आदेश दिया है. विदेश मंत्रालय ने यूएई स्थित भारतीय दूतावास से मुद्दे से संबंधित सभी ब्योरे का पता लगाने को कहा था. सरकारी सूत्रों ने कहा कि मिशेल के प्रत्यर्पण को लेकर यूएई के अधिकारियों की ओर से भारत को कोई आधिकारिक संदेश नहीं मिला है.

भारत में मिशेल 3,600 करोड़ रुपये के अगस्तावेस्टलैंड वी वी आई पी हेलीकॉप्टर सौदा मामले में वांछित है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मिशेल के खिलाफ जून 2016 में दायर आरोपपत्र में आरोप लगाया था कि उसे अगस्तावेस्टलैंड से लगभग 225 करोड़ रुपये मिले थे.

मिशेल के खिलाफ जांच कर रही हैं ईडी और सीबीआई मिशेल उन तीन बिचौलियों में से एक है जिनके खिलाफ मामले में ईडी और सीबीआई द्वारा जांच की जा रही है. अन्य दो बिचौलिये हैश्के और कार्लो गेरोसा हैं. अदालत की तरफ से मिशेल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए जाने के बाद दोनों एजेंसियों ने उसके खिलाफ इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था. भारतीय वायुसेना के लिए 12 ए डब्ल्यू 101 वी वी आई पी हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति के लिए फिनमेकेनिका की ब्रिटिश अनुषंगी अगस्तावेस्टलैंड के साथ हुए सौदे को भारत ने 423 करोड़ रुपये तक की रिश्वत दिए जाने (कंपनी की तरफ से सौदा हासिल करने के लिए) और अनुबंध दायित्वों के उल्लंघन के आरोपों के चलते एक जनवरी 2014 को रद्द कर दिया था. सीबीआई ने आरोप लगाया है कि आठ फरवरी 2010 को हस्ताक्षरित इस सौदे के चलते सरकारी खजाने को लगभग 2,666 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

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