सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने मंगलवार (4 नवंबर, 2025) को कहा कि जटिल खतरों की दुनिया में कोई भी देश अकेला सुरक्षित नहीं है और साझा रक्षा नवाचार ही सबसे मजबूत ढाल है. रक्षा क्षेत्र के थिंक टैंक भारत शक्ति की ओर से आयोजित 'इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव 2025' में अपने संबोधन में उन्होंने यह भी कहा कि भारत की 'ढाई मोर्चों की चुनौती' और 'ऑपरेशन सिंदूर के बाद के सशक्तीकरण' से सशस्त्र बलों को क्रमिक विकास और नई सैन्य प्रणालियों के समावेश में अधिक लचीलापन प्राप्त हुआ है.

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वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों, रक्षा विशेषज्ञों, उद्योग प्रतिनिधियों की भागीदारी वाले सम्मेलन को संबोधित करते हुए अपने 20 मिनट के संबोधन में उन्होंने युद्ध की बदलती प्रकृति, दक्षता विकास, रक्षा अनुसंधान और विकास में निवेश और उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा, 'युद्ध का भविष्य किसी एक क्षेत्र या सिद्धांत से परिभाषित नहीं होगा, बल्कि इस बात से परिभाषित होगा कि हम विचारों को कितनी निर्णायक रूप से स्थायी क्षमताओं में बदलते हैं.' उन्होंने कहा कि अवधारणा से क्षमता तक की यात्रा वास्तव में 'निर्भरता से प्रभुत्व की ओर, भविष्य की तैयारी से उसे प्राप्त करने की ओर' की यात्रा है. सेना प्रमुख ने कहा, 'इस हॉल में उपस्थित मेरे सहित सभी नेताओं के लिए, अवधारणाएं हमें प्रेरित करती हैं, क्षमताएं हमारी रक्षा करती हैं. यह नेतृत्व ही है, जो यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति दूसरे जैसा बने.'

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उन्होंने रणनीतिक साझेदारियों को 'अवसरों का सेतु' बताया. सेना प्रमुख ने कहा कि जहां अनुसंधान एवं विकास उन चीज़ों का निर्माण करता है, जिन्हें कोई बना सकता है, वहीं रणनीतिक साझेदारी उन चीज़ों का विस्तार करती है, जिन तक कोई पहुंच सकता है.

उन्होंने कहा, 'जटिल खतरों से भरी दुनिया में, कोई भी देश अकेले सुरक्षित नहीं रह सकता. साझा रक्षा नवाचार सबसे मज़बूत ढाल है. कुछ प्रौद्योगिकियां हमें कभी भी आसानी से नहीं मिल जाएंगी. ज़रूरत है साझा लाभ और स्थानीय नियंत्रण की शर्तों के तहत सहयोग करने की.' सेना प्रमुख ने उदाहरण देते हुए कहा कि ब्रह्मोस और के9 वज्र इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. उन्होंने कहा कि किसी भी अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) के लिए सबसे महत्वपूर्ण है 'शून्य से एक तक' का प्रयास.

उन्होंने कहा, 'एक बार जब यह शून्य से एक और एक से सौ हो जाता है, तो यह और भी आसान हो जाता है, क्योंकि इसके लिए प्रतिकृति, संशोधन और उन्नयन की आवश्यकता होती है. इसलिए शून्य से एक तक पहुंचने पर हमें ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, यदि ऐसा नहीं होता है, तो हमें इसे कहीं बाहर से प्राप्त करने की आवश्यकता है.'

सेना प्रमुख ने कहा कि सेना दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रही है और प्रौद्योगिकी तथा टीटीपी (तकनीक, रणनीति और प्रक्रिया) को अनुकूलित या लगातार संशोधित करके इसे अपना रही है, तथा ड्रोन युद्ध इसका जीवंत उदाहरण है. जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने आग्रह किया कि उद्योग जगत को उभरती प्रौद्योगिकियों, एआई, साइबर, क्वांटम, मानवरहित स्वायत्त प्रणालियों, अंतरिक्ष और उन्नत सामग्रियों में निवेश करना चाहिए.

उन्होंने कहा, 'न केवल भविष्य की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, बल्कि भारत के विनिर्माण विकास और रक्षा निर्यात को भी बढ़ावा देने के लिए. इसका प्रमाण आकाश एयर डिफेंस (वायु रक्षा), एटीएजीएस तोपों और हल्के टैंक जोरावर जैसी स्वदेशी प्रणालियों में दिखाई देता है.'