नई दिल्ली: राज्यसभा सदस्यता छोड़ने के संबंध में बढ़ते दबाव के बीच जेडीयू के बागी नेता शरद यादव ने कहा कि नीतीश कुमार ने खुद जेडीयू के बुनियादी सिद्धांतों का त्याग कर दिया है और इस तरह से अपनी इच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है. शरद यादव ने दावा किया कि पार्टी के कई लोग नीतीश और बीजेपी गठबंधन का समर्थन नहीं करते हैं.

शरद यादव ने जेडीयू सांसद कौशलेन्द्र कुमार के पत्र के जवाब में लिखा कि हमने 25 अगस्त को निर्वाचन आयोग के समक्ष याचिका दी है जिसमें चुनाव चिन्ह आदेश 1968 के पैरा 15 के तहत हमने कहा है कि जेडीयू का बहुमत हमारा समर्थन करता है. इस तरह से जेडीयू का चुनाव चिन्ह हमें आवंटित किया जाना चाहिए. जेडीयू के चुनाव चिन्ह को नीतीश कुमार के धड़े को नहीं दिया जाना चाहिए. यह मामला चुनाव आयोग के समक्ष लंबित है.

जेडीयू के बागी नेता ने कहा कि ऐसा लगता है कि पूर्ण रूप से अवसरवादी राजनीति से प्रेरित होकर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले धड़े ने बिहार के लोगों के उस पवित्र भरोसे को तोड़ा है जो लोगों ने जेडीयू में व्यक्त किया था. नीतीश कुमार और आपने (कौशलेन्द्र कुमार) जेडीयू के बुनियादी सिद्धांतों का त्याग कर दिया है और इस तरह से स्वेच्छा से जेडीयू की सदस्यता छोड़ दी है.

शरद ने कहा कि ऐसे में आपको ऐसी कोई चिट्ठी जारी करने का नैतिक अधिकार नहीं है जो पार्टी के संविधान के खिलाफ हो. गौरतलब है कि जेडीयू महासचिव केसी त्यागी ने कहा था कि राज्य सभा में पार्टी के नेता आरसीपी सिंह जल्द ही सभापति वेंकैया नायडू को एक पत्र सौंपेगे . इसमें शरद यादव की संसद सदस्यता रद्द करने की बात कही जायेगी.

बहरहाल जेडीयू के दिशानिर्देशों के उलट शरद यादव, पटना में लालू प्रसाद की पार्टी आरडेडी की रैली में शामिल हुए थे. इसके साथ ही बुधवार को इंदौर में उनकी ओर से विभिन्न दलों को शामिल करते हुए साझा विरासत कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.

जाने माने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि संविधान की 10वीं अनुसूची और दल बदल विरोधी कानून के अनुसार अगर किसी पार्टी का कोई सदस्य अपनी पार्टी के चिन्ह पर चुनाव लड़ता है और अगर वह पार्टी के आदेश के विरुद्ध मतदान करता है या नहीं करता है...ऐसी स्थिति में उसके खिलाफ अयोग्य ठहराये जाने की याचिका दायर की जा सकती है. उन्होंने कहा कि दूसरी स्थिति में अगर कोई सांसद स्वेच्छा से पार्टी को छोड़ता है, तो उसके खिलाफ अयोग्य ठहराने की कार्रवाई की जा सकती है. अगर उसने इस्तीफा नहीं दिया है तो सवाल होगा कि उसने पार्टी छोड़ी है या नहीं छोड़ी है.

कश्यप ने कहा कि ऐसी स्थिति में याचिका पर फैसला राज्यसभा के सभापति करेंगे. हालांकि ऐसे मामलों में राज्यसभा के सभापति का निर्णय न्यायिक समीक्षा के दायरे में होगा.