नई दिल्ली: पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले दिल्ली गैंगरेप कांड के 3 दोषियों की पुनर्विचार याचिका आज सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. पिछले साल कोर्ट ने सभी दोषियों को फांसी की सज़ा दी थी. आज कोर्ट ने माना कि दोषी ऐसी कोई बात रखने में नाकाम रहे, जिसकी वजह से फैसले को बदलना ज़रूरी लगे. कोर्ट ने मुकेश, विनय और पवन की पुनर्विचार याचिका खारिज की है. अक्षय ने अब तक पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की है.

क्या थी घटना? 16 दिसंबर 2012 को 23 साल की फिजियोथेरेपी छात्रा अपने एक दोस्त के साथ फिल्म 'लाइफ ऑफ़ पाई' देखने गई. रात साढ़े 9 बजे मुनिरका में वो एक चार्टर बस में सवार हुई. बस में सवार ड्राइवर समेत 6 लोग दरअसल मौज-मस्ती के इरादे से निकले थे. उनके पास उस रुट में बस चलाने का परमिट नहीं था. वो लड़की को बस के पिछले हिस्से में ले गए. जहां सब ने बारी-बारी से उसके साथ बलात्कार किया. विरोध करने पर उसके दोस्त की जम कर पिटाई की और उसे एक किनारे डाल दिया.

गैंगरेप की इस पूरी घटना के दौरान इन लोगों ने पीड़िता के साथ जानवरों से भी बदतर बर्ताव किया. उसके गुप्तांग में लोहे का सरिया भी डाला गया. जिससे उसकी आंत बाहर निकल आई. शरीर के अंदरूनी हिस्सों को काफी नुकसान पहुंचा.

रात 11 बजे उन्होंने निर्भया और उसके दोस्त को बस से धक्का दे दिया. लड़की को बेहद गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया. उसके शरीर के अंदरूनी हिस्से जंग लगे लोहे की रॉड से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके थे. उसे बेहतर इलाज के लिए केंद्र सरकार के खर्चे पर सिंगापुर ले जाया गया. वहां 29 दिसंबर को उसकी मौत हो गई.

कोर्ट का फैसला वारदात को अंजाम देने वाले 6 लोगों में से राम सिंह की जेल में मौत हो गई थी. एक नाबालिग दोषी बाल सुधार गृह में 3 साल बिताकर रिहा हो गया. ऐसे में निचली अदालत और हाई कोर्ट में 4 लोगों पर मुकदमा चला. दोनों अदालतों ने चारों को फांसी की सज़ा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा.

5 मई 2017 को दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "ये घटना इस दुनिया की लगती ही नहीं. ये ऐसी दुनिया की घटना लगती है जहां इंसानियत मर चुकी हो. दोषियों की नज़र में पीड़िता इंसान नहीं, सिर्फ एक मज़े का सामान थी."

फांसी से कितनी दूर दोषी सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सज़ा की पुष्टि होने के बाद निचली अदालत दोषियों का डेथ वारंट जारी करती है. इस वारंट में फांसी की तारीख और समय तय किया जाता है. हालांकि, अभी दोषियों के पास क्यूरेटिव पेटिशन (संशोधन याचिका) दाखिल करने और राष्ट्रपति से दया की गुहार करने का विकल्प बचा है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले के बाद भी निचली अदालत डेथ वारंट जारी करने से पहले 1-2 महीने इंतज़ार करेगी.

अगर दोषी बचे हुए कानूनी विकल्प का इस्तेमाल करते हैं तो निचली अदालत उनका निपटारा होने का इंतज़ार करेगी. अगर निचली अदालत से डेथ वारंट जारी होने के बाद भी दोषी किसी कानूनी विकल्प का इस्तेमाल करते हैं तो निचली अदालत डेथ वारंट वापस ले लेती है. साफ है कि निर्भया के साथ हैवानियत के दोषियों की फांसी में अभी भी कुछ महीनों का वक्त लग सकता है.