नई दिल्लीः पिछले दो हफ्तों से गैस चेंबर में तब्दील हो चुकी दिल्ली और एनसीआर को फिलहाल मंगल और बुधवार को हुई बारिश के बाद कुछ राहत मिल गई. लेकिन यह समस्या हर साल इसी तरह से मुंह फैला कर सामने आ जाती है. जब समस्या सामने आती है तो आनन-फानन में कई उपाय करने की बात की जाती है हालांकि उसके बाद कुदरती तौर पर ही समस्या दूर भी हो जाती है. हर साल जब यह समस्या सामने आती है तो सवाल उठता है कि आखिर इसकी वजह क्या है. वैसे एनजीटी पिछले 4 सालों से लगातार दिल्ली में प्रदूषण की रोकथाम को लेकर लगातार आदेश जारी करता रहा है लेकिन हर साल अक्टूबर नवंबर का महीना आते ही दिल्ली और एनसीआर की हवा जहरीली हो जाती है और जब इस पर सरकारों से जवाब मांगा जाता है तो राज्य सरकारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाता है और इस सब के बीच में परेशान होती है आम जनता जिसको जहरीली हवा में सांस लेने के लिए छोड़ दिया जाता है. इस साल भी जब दिल्ली और एनसीआर की हवा जहरीली और जानलेवा स्तर तक पहुंच गई तो उसके बाद अचानक कुछ एक उपाय करने का फैसला किया गया. हालात बिगड़ते गए तो इस बीच नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी मामले पर स्वतः संज्ञान लेकर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और केंद्र सरकार के कृषि सचिव को ट्रिब्यूनल के सामने पेश होने का आदेश जारी कर दिया एनजीटी के चेयरमैन के साथ हुई बैठक के दौरान दिल्ली से सटे पड़ोसी राज्यों ने दिल्ली सरकार की उस दलील को मानने से इनकार कर दिया जिनमें दिल्ली सरकार का कहना था दिल्ली में प्रदूषण की बड़ी वजह पड़ोसी राज्यों में जलाई जा रही पराली है. इसको साबित करने के लिए पंजाब सरकार के मुख्य सचिव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने कुछ आंकड़े भी पेश किए और उन आंकड़ों के जरिए यह बताने की कोशिश की कि पिछले कुछ सालों की तुलना में इस साल पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी आई है और इस साल हवा का रुख भी पंजाब की तरफ से दिल्ली की तरफ नहीं था लेकिन फिर भी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर लगातार जानलेवा की श्रेणी में बना रहा जबकि पंजाब के अधिकतर इलाकों में ये खराब की श्रेणी में ही रहा. एनजीटी ने राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों और केंद्र सरकार के कृषि सचिव को एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया है जिसका मकसद यह होगा कि पता लगाया जा सके क्यों क्या वाकई में दिल्ली और एनसीआर में अचानक पढ़ने वाले प्रदूषण की वजह पराली जलाना ही है या फिर आंतरिक वजहें ज्यादा बड़ी है. इस कमेटी को यह रिपोर्ट 30 अप्रैल 2019 को होने वाली अगली सुनवाई से पहले तैयार करनी होगी. इसका मकसद यह होगा जिससे कि पता चल पाए कि क्या हर साल दिल्ली और एनसीआर में अक्टूबर-नवंबर के दौरान जो जानलेवा हालात बनते हैं उसकी वजह पराली जलाना है यही है या फिर स्थानीय वजह ज्यादा महत्वपूर्ण है. राज्य और केंद्र के अधिकारियों के साथ हुई बैठक के बाद एनजीटी ने आदेश देते हुए कहा है कि
  • अगर अभी भी किसान पराली जलाते हुए पाए जाते हैं तो ऐसे किसानों को राज्य सरकार द्वारा दी जा रही बिजली माफ़ी जैसी छूट और मिलने वाली सुविधाएं न दी जाए और इनको पंजाब, हरियाणा और यूपी में लागू किया जाए.
  • केंद्रीय कृषि सचिव सभी राज्यों के चीफ सेक्रेटरी के साथ रेगुलर मीटिंग करगे .
  • इसके साथ ही यह भी देखा जाए कि कैसे किसानों को पराली जलाने से रोका जा सकता है इसके लिए उनको मशीन या बाकी सुविधाओं की जरूरत हो तो वह भी दिया जा सके.
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