लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर बुधवार (24 सितंबर 2025) को जारी आंदोलन हिंसक हो गया. इस दौरान सड़कों पर आगजनी और झड़प हुई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 40 पुलिसकर्मियों समेत कम से कम 80 लोग घायल हो गए. साल 2019 में लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्जा मिला था. हालांकि, अगर हम लद्दाख की जनसंख्या की बात करें तो लद्दाख का प्रमुख धर्म बौद्ध है. लद्दाख की लगभग 77% आबादी बौद्ध है. 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां मुसलमानों की आबादी 14% जिसमें सुन्नी, शिया और नूर बख्शी समुदाय शामिल हैं.
कश्मीर घाटी में इस्लामी प्रभाव अधिक है, लेकिन लद्दाख में भी इस्लाम का प्रवेश ऐतिहासिक रूप से हुआ. 1382 ई. में मीर सैयद अली हमदानी लद्दाख आए और उन्होंने सबसे पहले इस्लाम धर्म का प्रचार किया. कहा जाता है कि उन्होंने शे मस्जिद का निर्माण करवाया. 15वीं शताब्दी में शम्सुद्दीन इराकी आए और उन्होंने कुछ लोगों को नूरबख्शिया संप्रदाय में परिवर्तित किया. शुरुआती मुसलमान दरअसल कश्मीर के व्यापारी थे, जो व्यापार के लिए लद्दाख आए और यहीं बस गए. इन व्यापारियों ने स्थानीय लद्दाखी लड़कियों से विवाह किया और धीरे-धीरे मुस्लिम आबादी का हिस्सा बन गए.
धार्मिक सामंजस्य और संस्कृतिलद्दाख की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां विभिन्न धर्मों के लोग सद्भाव और सामंजस्य के साथ रहते हैं. बौद्ध त्योहार और इस्लामी परंपराएं साथ-साथ मनाई जाती हैं. स्थानीय समाज में सहअस्तित्व की भावना लद्दाख को सांस्कृतिक रूप से और भी समृद्ध बनाती है. बौद्ध धर्म यहां के मठों, त्योहारों और सांस्कृतिक जीवन में गहराई से समाया हुआ है. मठों (मठों को यहां गोम्पा कहा जाता है) जैसे हेमिस, थिकसे, अल्ची न सिर्फ धार्मिक स्थल हैं बल्कि कला, शिक्षा और संस्कृति के केंद्र भी हैं. लद्दाखी समाज में बौद्ध धर्म शांति, सामंजस्य और सहिष्णुता का प्रतीक माना जाता है. यही कारण है कि यहां आने वाले पर्यटक इसकी आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक विविधता से प्रभावित हो जाते हैं.