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यूपी में मुस्लिम राजनीति के वो बड़े चेहरे जिनकी भूमिका हर चुनाव में अहम है?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलमान आबादी विधानसभा में ही नहीं बल्कि लोकसभा चुनावों में भी हार-जीत का गणित तय करती है. इसमें इसी आबादी से निकल कर आने वाले नेताओं की अहम भूमिका होती है.

उत्तर प्रदेश भारत की सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है. देश की कुल आबादी का 16.51 फीसदी यहीं बसता है. ये बात भी जगजाहिर है कि इस सूबे में चुनावों में हुई हार-जीत का गणित देश की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाता है. साल 2011 की जनगणना पर नजर डाले तो यूपी की कुल आबादी 19.98 करोड़ रही और इसमें 3.84 करोड़ मुस्लिम रहे.

इस हिसाब से देखा जाए तो इस सूबे की कुल आबादी में 20.26 फीसदी मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है. यही वजह है कि सियासी शतरंजी बिसात पर मुस्लिम वोट बैंक की अहमियत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. यहां विभिन्न राजनीतिक दलों की हार-जीत का दारोमदार मुस्लिम नेताओं पर रहता है.

यूपी के यही मुस्लिम नेता अपने प्रभाव से इस समुदाय का वोट बैंक खींचते हैं. ऐसे कुछ असरदार और रौबदार नेताओं में आजम खान, मुख्तार अंसारी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी हैं तो इमरान मसूद  शफीकुर्रहमान बर्क,  नाहिद हसन, हाजी फजलुर्रहमान, एसटी हसन जैसे जनता के बीच मशहूर चेहरे भी शामिल हैं. इसमें दो राय नहीं कि लोकसभा 2024 के चुनावों में भी इन चेहरों पर दांव लगाकर राजनीतिक पार्टियां मुसलमान वोट पाने की कवायद करेंगी. 

आजम खान

यूपी में मुसलमान नेताओं के असर की बात हो और इस कड़ी में आजम खान का नाम न लिया जाए ऐसा कैसे हो सकता है. सपा की रीढ़ कहे जाने वाले आजमखां का नाम यूपी के प्रभावशाली नेता के तौर पर सामने आता है. यूपी के मुसलमानों पर आजम खान के असर का अंदाजा लगाना हो तो ज्यादा दूर नहीं जाना होगा. उसके लिए साल 2022 के यूपी विधान सभा चुनाव ही काफी है. मार्च 2022 में वो 2 साल से सीतापुर की जेल में बंद थे, लेकिन इसके बावजूद सपा सांसद आजम खान ने जिले में सबसे अधिक वोट हासिल कर इतिहास रच डाला.

आलम ये था कि इससे पहले के सूबे के चुनावों में इतने वोट किसी भी उम्मीदवार को नहीं मिले. तब रामपुर में सांसद आजम खां को 130649 वोट मिले थे. उनके खिलाफ खड़े हुए बीजेपी के उम्मीदवार आकाश सक्सेना केवल 75411 वोट हासिल कर पाए थे. उधर दूसरी तरफ उनके बेटे अब्दुल्ला आजम ने स्वार टांडा में अपना दल के हैदर अली खान उर्फ हमजा मियां को शिकस्त दी थी. 

उन्होंने हमजा को 61103 वोटों से मात दी थी. अब्दुल्ला आजम को 12616 और हमजा मियां को 65059 वोट मिले थे. सूबे में समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले आजम खां अभी रामपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद है. वह सूबे के 17वीं विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं.

राजनीति में आने से पहले वकील रहे आजम खां यूपी में सबसे वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं और रामपुर विधानसभा क्षेत्र से 9 बार विधान सभा के सदस्य रहने का खिताब भी उनके नाम है. उनके खिलाफ 80 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन इसके बावजूद के असरदार मुस्लिम नेता के तौर पर उनका जलवा कम नहीं हुआ है. 

नसीमुद्दीन सिद्दीकी का असर

कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी यूपी में मुस्लिम वोट बैंक में खासा असर रखते हैं. यूपी में झांसी से आने वाले सिद्दीकी बीएसपी के पहले मुस्लिम विधायक थे. सिद्दीकी 1991में बांदा से बसपा के पहले मुस्लिम विधायक बने थे. वक्त के साथ वो मायावती के बेहद खास होते गए. सूबे में 2007 में बसपा सरकार बनने पर उनका दर्जा मिनी मुख्यमंत्री जैसा रहा.

2010 के एमएलसी चुनाव में मायावती ने बांदा हमीरपुर से उनके बड़े भाई और पुराने बसपा नेता जमीरउद्दीन सिद्दीकी को उम्मीदवार बनाने का एलान किया. इससे सिद्दीकी बसपा सुप्रीमो से नाराज हो गए. उन्होंने जमीरउद्दीन का टिकट काटकर इन चुनावों में अपनी पत्नी हुस्ना सिद्दीकी को एमएलसी प्रत्याशी बना डाला.

उनकी पत्नी जीतीं और विधान परिषद पहुंचीं. मायावती ने 10 मई  2017 को बीएसपी के दबंग नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को उनके बेटे सहित पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. साल 2018 में सिद्दीकी ने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया. तब से आज तक वो यूपी में कांग्रेस पार्टी के लिए मुस्लिम वोट बैंक जुटाने में लगे हैं. 

मुख्तार अंसारी का दबदबा

मुख्तार अंसारी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मुख्तार अहमद अंसारी के पोते हैं. यूपी के राजनीति में दबंग मुस्लिम नेता के तौर पर भी मुख्तार अंसारी को जाना जाता है. गाजीपुर के ही युसुफपुर-मुहम्मदाबाद में 1963 में जन्में मुख्तार का खानदान कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ा था. उनके पिता सुभानुल्लाह अंसारी का यूपी की राजनीति में अच्छा खासा दखल था.

बड़े भाई अफजाल की हौसला अफजाई ने उन्हें राजनीति में उतारा. साल 1985 में गाजीपुर की मुहम्मदाबाद सीट से अफजाल पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक चुने गए. इसमें मुख्तार का खासा योगदान रहा. इसके बाद उनकी राजनीति के फलक पर छा जाने की चाह बढ़ती गई.

वो गाजीपुर की किसी सीट से विधायकी का चुनाव लड़ना चाहते थे बात नहीं बनी तो वो बीएसपी के हो लिए मायावती के कहने पर साल 1996 में मऊ चुनावी दंगल में कूदे. मुस्लिम बहुल ये सीट मुख्तार के लिए मनचाही मुराद साबित हुई और वो यहां से हली बार बीएसपी के विधायक बने. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2017 तक वे लगातार उनका दबदबा इस सीट पर कायम रहा.

इसके बाद 2002 में मुख्तार मऊ से विधायक चुने गए. साल 2005 में मुख्तार पर मऊ में दंगा कराने के आरोप लगे और वो समर्पण कर गाजीपुर जेल चले गए. साल 2018 में उन्हें उन्नाव जेल भेजा गया. मुख्तार विधायक लगातार बने लेकिन सांसद बनने की इच्छा को उन्होंने बीएसपी के उम्मीदवार के तौर पर साल 2009 में बनारस से बीजेपी सांसद मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा.

तब उन्होंने इसके लिए आगरा सेंट्रल जेल से ही पर्चा भरा था. इस चुनाव में 17000 वोटों से हारे मुख्तार को मायावती ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. इसके बाद अफजाल, मुख्तार और सिगबतुल्ला तीन भाइयों  कौमी एकता दल पार्टी बना डाली. साल 2014 लोकसभा चुनाव में मुख्तार घोसी संसदीय सीट से हार का सामना करना पड़ा.  कौमी एकता दल 2017 बीएसपी में शामिल हो गया. इसके बाद मुख्तार को मऊ सदर से टिकट मिला और वो फिर विधायक बन गए. अभी वो  सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी में हैं.

 काजी रशीद के साए इमरान मसूद

पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत नेता काजी रशीद मसूद की 50 साल तक राजनीति में तूती बोलती थी. वे केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में खासा असर रखते थे. उनके संग साए में उनके भतीजे इमरान मसूद ने भी राजनीति के गुर सीखे. पश्चिमी यूपी में खासा दबदबा रखने वाले इमरान ने 20 अक्टूबर 2022 को समाजवादी पार्टी छोड़कर बीएसपी ज्वॉइन कर ली. दरअसल यूपी विधानसभा चुनावों में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर सपा का दामन थामा था.

उन्होंने अपना राजनीति का सफर 2006 में सहारनपुर के नगर परिषद के अध्यक्ष से शुरू किया. फिर साल 2007 में सहारनपुर जिले की मुजफ्फराबाद सीट (अब बेहट सीट) से विधायक बने. सपा के उन्हें टिकट देने से इंकार करने के बाद मसूद ने ये विधानसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था. इसमें उन्होंने जीत हासिल कर अपनी राजनीतिक ताकत लोगों को दिखा दी.

वो उत्तर प्रदेश के कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष, कांग्रेस में सलाहकार परिषद और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के पूर्व राष्ट्रीय सचिव भी रहे हैं. एक  इमरान मसूद ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि 20 की उम्र में वो चौधरी यशपाल सिंह के बेटे की मौत पर उनके घर चले गए थे. दरअसल यशपाल सिंह उनके पारिवारिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर जाने जाते थे.

इससे दोनों खानदानों के बीच की दूरियों में कमी आई. माना जाता है कि मसूद खानदान की राजनीति की बेल सहारनपुर की जनता के बीच इमरान मसूद ने ही हरी की है. गौरतलब है कि इमरान जिस जाति के है उसके वोटर यूपी में अधिक संख्या में नहीं है, लेकिन इसके बाद भी वो यूपी में अपना जनाधार कायम करने में कामयाब रहे हैं. कहा जाता है कि चुनावों में हार के बाद भी वह जनता के बीच एक मजबूत नेता की छवि रखते हैं.

 बीजेपी की विचारधारा के दानिश आजाद अंसारी

यूपी के बलिया में जन्मे दानिश आजाद अंसारी उत्तर प्रदेश सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं. दानिश न ही विधायक हैं और न ही विधान परिषद के सदस्य लेकिन उनके योगी कैबिनेट में राज्य मंत्री बनाए जाने ने सबको हैरानी में डाल दिया. लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र रहने के दौरान ही वह बीजेपी की स्टूडेंट विंग एबीवीपी में शामिल हो गए थे. वो बीजेपी की विचारधारा को मुस्लिम युवाओं में पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं.

उनकी इन्हीं खूबियों की वजह से यूपी सरकार ने उन्हें 29 अक्टूबर 2018 को उर्दू भाषा आयोग का सदस्य बनाया.  बीते साल 2021 में योगी मंत्रिमंडल में उन्हें अल्पसंख्यक मोर्चा में प्रदेश महामंत्री बनाया गया था. मुस्लिम ओबीसी के अंसारी समुदाय से आने वाले दानिश को मंत्री बनाकर बीजेपी ने इस मुस्लिम समुदाय को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है. वह लोकसभा 2024 में यूपी में बीजेपी का चेहरा बन कर सामने आएंगे. 

यूपी में लोकसभा- विधानसभा सीट

यूपी में 80 लोकसभा सीट और 403 विधानसभा की सीट हैं. इनमें से लगभग एक तिहाई यानी 143 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर प्रभावशाली हैं. 36 सीटों पर ऐसा असर है कि मुस्लिम उम्मीदवार यहां अपने दम पर जीत हासिल कर सकते हैं. अगर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मुसलमान हैं तो पश्चिमी यूपी में मुसलमानों की बड़ी तादाद हैं. पश्चिमी यूपी में 26.21 फीसदी आबादी मुसलमानों की हैं.

पश्चिमी यूपी में 26 जिले आते हैं, जहां विधानसभा की 136 सीटें हैं. अगर साल 2022 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो 34 मुसलमान विधायक चुने गए. इसमें 21 विधायक अकेले पश्चिम उत्तर प्रदेश से ही चुनकर आए थे. 6 सेंट्रल यूपी से तो 7 पूर्वांचल से जीते हैं. साल 2017 के विधान सभा चुनावों में 24 मुसलमान विधायक चुने गए थे.

साल 2014 में यूपी में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं बन पाया था. साल 2019 में यूपी से 6 मुस्लिम सांसद चुने गए थे. इसमें बीएसपी और सपा के 3-3 सांसद रहे. सपा के  बीएसपी के कुंवर अली दानिश ने अमरोहा से तो अफजाल अंसारी ने गाजीपुर और सहारनपुर से हाजी फजर्लुरहमान ने जीत हासिल की थी. उधर समाजवादी पार्टी से रामपुर से कद्दावर नेता आजम खान ने, संभल से शफीकुर्रमान और मुरादाबाद सीट से डॉ एसटी हसन जीते थे. 

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