मुंबई: मुंबई में मानसून आने के साथ ही झरनों से जुड़े हादसे भी हर साल की तरह शुरू हो गये हैं. कुछ झरनों के रास्ते पुलिस ने लोगों के लिये बंद कर दिये हैं, लेकिन कई ऐसे भी झरने हैं जहां लोग अपनी जान का जोखिम उठाकर मौज-मस्ती के लिये जा रहे हैं. बीते हफ्ते मुंबई के पास माथेरान में एक झरने में डूबने से संजना शर्मा नाम की युवती की मौत हो गई. कई घंटों की मशक्कत के बाद पुलिस ने स्थानीय निवासियों की मदद से उसके शव को बाहर निकाला. संजना की मौत झरनों से जुडा कोई पहला हादसा नहीं है. हर साल मुंबई से सटे झरनों से 8 से 10 लोगों के डूबकर मरने की खबर आती है.

मुंबई वालों को हर साल जिन कारणों से बारिश का इंतजार रहता है उनमें से एक झरने हैं. मुंबई से महज 50 या 100 किलोमीटर की दूरी पर मानसून के दौरान कई झरने खुल जाते हैं. नागोठणे, चिंचोटी, भिवपुरी, तुंगारेश्वर, खोपोली, कर्जत, पनवेल और खंडाला के पास बहने वाले झरनों पर मौज-मस्ती की खातिर निकले मुंबईवालों की खासी भीड़ देखी जाती है. शनिवार और रविवार के दिन आलम ये रहता है कि झरनों तक पहुंचने वाले रास्तों पर कई घंटों का जाम लग जाता है. कई लोग दोस्तों के ग्रुप में आते हैं तो कई लोग परिवार के साथ भी आते हैं.

झरनों पर मस्ती करते हुए कई लोग अपना होश खो बैठते हैं. शराब पीकर कई लोग इन ठिकानों पर खूब हुडदंग मचाते हैं. नशे में होने की वजह से अक्सर लोग पानी की गहराई, धारा की रफ्तार और मजबूती का अनुमान नहीं लगा पाते और हादसे का शिकार हो जाते हैं. झरनों पर कई बार अच्छे खासे तैराक भी डूब जाते हैं क्योंकि पानी का बहाव इतना तेज होता है कि लोगों को तैर पाने के लिये हाथ, पैर हिलाने का मौका ही नहीं मिलता. कुछेक बार लैंड स्लाईडिंग या फिर बड़े पत्थर गिरने की वजह से लोगों की मौत चुकी है. हाल के चंद सालों में कई लोगों की मौत झरनों पर हो चुकी है. अक्सर झरने पर भीगते वक्त बारिश होने से जलस्तर बढ जाता है जिसे तुरंत लोग समझ नहीं पाते. ऐसे में उनके बचाव के लिये पुलिस को फायर ब्रिगेड या फिर NDRF को बुलाना पडता है.

बीते चंद सालों से पुलिस खतरनाक झरनों पर लोगों के जाने के लिये पाबंदी लगा रही है. इस साल भी देवकुंड और पांडवकडा झरनों पर पाबंदी लगाई है. साल 2017 में पुलिस ने कई झरनों पर लोगों की भीड़ रोकने के लिये जमावबंदी यानी धारा 144 लगा दी थी. जल्द ही पुलिस कुछ और झरनों पर पाबंदी लगा सकती है.

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