मुगल साम्राज्य में कई रानियां और शहज़ादियां हुईं, लेकिन जिनका नाम आज भी लिया जाता है, उनमें जहां आरा बेगम सबसे आगे आती हैं. शाहजहां और मुमताज महल की बड़ी बेटी होने के बावजूद उनकी पहचान सिर्फ एक शहज़ादी की नहीं थी. वे सत्ता, संस्कृति और समाज तीनों क्षेत्रों में अपनी गहरी पकड़ के लिए जानी जाती थीं. उन्हें बादशाह बेगम का दर्जा मिला, जो किसी भी मुगल महिला के लिए अत्यंत सम्मान की बात थी. 23 मार्च 1614 ईस्वी में जन्मी जहां आरा, मुगल बादशाह शाहजहां और उनकी सबसे प्रिय बेगम मुमताज महल की सबसे बड़ी संतान थीं. मुगल बादशाह शाहजहां की बेटी जहां आरा का जन्म 23 मार्च 1614 ईस्वी में हुआ था. जहां आरा जब महज 14 साल की थी तो उन्हें साल का 6 लाख रुपये पॉकेट मनी मिलता था, जो आज के हिसाब के हजार करोड़ के पार चला जाएगा.

Continues below advertisement

ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर अब्दुस समद खान के मुताबिक साल 1638 में वे पहली बार पेशावर पहुंचीं. यह वह समय था, जब यह शहर मध्य एशिया से आने वाले व्यापारिक रास्तों का बड़ा केंद्र माना जाता था. यात्रियों और व्यापारिक काफिलों की भीड़ तो रहती थी, लेकिन ठहरने और सुरक्षा की व्यवस्था बेहद कमजोर थी. जहां आरा ने हालात देखकर समझ लिया कि यहां एक बेहतर और सुरक्षित जगह की बेहद जरूरत है, जहां दूर-दराज से आने वाले लोग आराम से रुक सकें. जहां आरा ने पेशावर के पुराने किले गोर गठरी में एक विशाल और सुरक्षित सराय बनवाने का निर्णय लिया. यह इमारत 1638 से 1641 तक बनती रही और पूरा होने के बाद इसे सराय जहां बेगम कहा गया.

शहज़ादी की सोचआरा बेगम के बारे में कहा जाता है कि वे शासन और जनसेवा दोनों में समान रुचि रखती थीं. दिल्ली और आगरा में उन्होंने कई मस्जिदों और सार्वजनिक स्थलों की देखभाल का जिम्मा लिया. जनता की जरूरतों को समझकर वक्फ बनाए और आय का एक बड़ा हिस्सा गरीबों व जरूरतमंदों पर खर्च किया. उनकी पहल यह दिखाती हैं कि वे सिर्फ महल की राजनीति तक सीमित नहीं थीं बल्कि सामाजिक कल्याण में भी सक्रिय थीं.

Continues below advertisement

ये भी पढ़ें: 'मैं सिर्फ स्लीपिंग पार्टनर...', गोवा क्लब के को-ओनर का अग्निकांड पर आया पहला बयान