मुगल इतिहास के बारे में कई जानकारियां मौजूद हैं. हालांकि, इन सब में औरंजेब को लेकर भी की कहानियां मशहूर हैं. एक कहानी उसके उम्र के आखिरी पड़ाव से जुड़ी हुई है. बात है साल 1680 की, जब औरंगजेब अपने पूरे साम्राज्य के लश्कर के साथ दक्षिण भारत पहुंचा था. मुगल परंपरा के अनुसार राजधानी बादशाह के साथ चलती थी, इसलिए उसका काफिला चलता-फिरता नगर लगता था. इतिहासकार ऑड्री ट्रुश्के के अनुसार यह यात्रा मुगल साम्राज्य की ताकत का जीवंत प्रदर्शन थी, लेकिन इस यात्रा ने उन्हें दिल्ली से हमेशा के लिए दूर कर दिया. वे फिर कभी लाल किले में नहीं लौटे और सत्ता का केंद्र दक्षिण भारत तक सीमित हो गया. दक्षिण भारत में औरंगजेब ने कई घेराबंदियों और युद्धों का नेतृत्व किया. उनके सैनिक भीमसेन सक्सेना ने अपनी आत्मकथा तारीख-ए-दिलकुशा में लिखा कि औरंगजेब की किलों पर कब्जा करने की लालसा असीमित थी, लेकिन इन लगातार युद्धों ने उसकी शक्ति को कमजोर कर दिया.
बुढ़ापे तक औरंगजेब का निजी जीवन गहरे दुखों से भर गया. उसकी बेटियां, दामाद और पोते एक-एक करके गुजरते गए. जेब-उन-निसां (1702), पुत्र अकबर (1704), बहू जहानजेब बानो (1705) और बेटी मेहर-उन-निसां (1706) की मौत ने उन्हें टूटकर अकेला कर दिया. इतिहासकार जदुनाथ सरकार के अनुसार, अंत तक वे जलनखोर और चापलूस दरबारियों से घिरे रहे. उनके बेटे मुअज्जम, आजम और कामबख्श राजसिंहासन संभालने लायक नहीं थे. इन सब से निराश होकर औरंगजेब ने एक पत्र में लिखा कि एक नालायक बेटे से बेहतर है एक बेटी होना. इसके अलावा उसने आखिर में अपने बेटों को लताड़ते हुए लिखा, ''तुम इस दुनिया में अपने प्रतिद्वंदियों और खुदा को किस तरह अपना मुंह दिखाओगे?"
दक्षिण में अकाल और महामारी1702 से 1704 तक दक्षिण भारत भयंकर अकाल और महामारी से जूझ रहा था. यात्री निकोलाव मनुची ने लिखा कि दो सालों में करीब 20 लाख लोग मारे गए. लोग अपने बच्चों को मामूली दामों पर बेचने लगे, लेकिन खरीदार तक नहीं मिलते थे. गांव वीरान हो गए और लाशों की दुर्गंध से वातावरण भयावह हो गया.
औरंगज़ेब की मृत्यु और विरासत1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु दक्षिण भारत में हुई. वे जानते थे कि साम्राज्य बिखर रहा है और उनके बेटे इसे संभालने में सक्षम नहीं हैं. इतिहासकार मूनिस फ़ारूकी के अनुसार, उनका कठोर अनुशासन और बेटों पर नियंत्रण उनकी कमजोरी बन गया. उनका जीवन युद्ध और जीतों में बीता, लेकिन अंत में उनके हिस्से आई अकेलापन, दुख और एक डगमगाता हुआ साम्राज्य.
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