राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने आरएसएस के गठन और विकास में नागपुर के अद्वितीय योगदान पर जोर देते हुए कहा कि संगठन का उद्भव केवल शहर में ही हो सकता है, क्योंकि इसमें त्याग और सामाजिक प्रतिबद्धता की अंतर्निहित भावना है.

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महाराजा नागपुर ट्रस्ट द्वारा आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए शुक्रवार (10 अक्टूबर) को संघ सरसंघचालक ने कहा, "देश भर में ऐसे लोग हैं जो हिंदुत्व पर गर्व करते हैं और हिंदुओं के बीच एकता का आह्वान करते हैं, मेरा मानना ​​है कि आरएसएस जैसा संगठन केवल नागपुर में ही आकार ले सकता है. त्याग और सामाजिक प्रतिबद्धता की भावना यहां पहले से ही मौजूद थी, जिसने डॉ. हेडगेवार को आरएसएस की स्थापना में मदद की."

शिवाजी महाराज का जिक्र कर क्या बोले भागवत?

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आरएसएस प्रमुख ने छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत का भी ज़िक्र किया और स्वराज और एकता के उनके दृष्टिकोण की प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज के प्रयास व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर, धर्म और राष्ट्र के लिए थे. उन्होंने आगे कहा कि उनके आदर्श आज भी शासकों, स्वतंत्रता सेनानियों और यहां तक कि 1857 के विद्रोह को प्रेरित करते हैं.

भागवत ने कहा, "जब शिवाजी महाराज ने स्वराज की स्थापना शुरू की तो उन्होंने लोगों को अपने लिए नहीं बल्कि महान उद्देश्य के लिए एकजुट किया था. उनकी एकता की भावना ने ही लोगों को ताकत दी. जब तक उनके आदर्श समाज को प्रेरित करते रहे, उस युग का इतिहास प्रगति और विकास से भरा रहा. शिवाजी महाराज के दर्शन ने देश भर के शासकों और स्वतंत्रता सेनानियों को प्रभावित किया और 1857 के विद्रोह को भी प्रेरित किया.

'हमें अपने अतीत से सीखने की जरूरत'

RSS चीफ ने कहा कि अंग्रेजों ने लोगों को एकजुट करने वाले प्रतीकों को व्यवस्थित रूप से नष्ट करने का प्रयास किया और नागरिकों से राष्ट्र की प्रगति और सामाजिक भलाई के लिए लड़ने वालों की निस्वार्थता से सीखने की अपील की. भागवत ने कहा, "हमें अपने अतीत से उन लोगों से सीखने की ज़रूरत है जिन्होंने समाज की भलाई के लिए निस्वार्थ भाव से संघर्ष किया."

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