नई दिल्ली: 2019 आम चुनाव से पहले मोदी सरकार अन्नदाता यानि किसानों के लिए एक बड़ा कदम उठाने जा रही है. न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत से डेढ़ गुना करने के एलान को मूर्तरूप देने के लिए सरकार एक योजना का एलान कर सकती है. योजना के तहत किसानों का समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए तीन विकल्प तैयार किए गए हैं. इसके लिए एक फंड बनाने का भी प्रस्ताव है. कल होने वाली बैठक में इसे कैबिनेट की मंज़ूरी मिल सकती है.

अनाज खरीदने के 3 विकल्प, सरकार करेगी नुकसान की भरपाई किसानों और खेती के मोर्चे पर आलोचना झेल रही मोदी सरकार कल एक बड़ा फैसला कर सकती है. ख़रीफ़ फसलों के लिए रिकॉर्ड समर्थन मूल्य घोषित करने के बाद अब मोदी सरकार किसानों को वही दाम दिलाना सुनिश्चित करना चाहती है. इसके लिए बुधवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक में एक योजना को मंज़ूरी मिल सकती है जिसमें किसानों से अनाज ख़रीदने के लिए तीन विकल्प तैयार किये गए हैं.

1. बाज़ार गारंटी स्कीम (Market Assurance Scheme)- आमतौर पर प्रचलित विकल्प जिसमें केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियां जैसे एफसीआई किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज ख़रीदती हैं.

2. मूल्य न्यूनता ख़रीद स्कीम (Price Deficiency Procurement Scheme)- ये मध्य प्रदेश में पहले से लागू भावान्तर भुगतान योजना जैसी स्कीम है. इसके तहत अगर फ़सल का दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम होगा तो समर्थन मूल्य और फ़सल के दाम के अंतर का भुगतान सरकार करेगी.

3. निजी ख़रीद और स्टॉक स्कीम (Private Procurement & Stockist Scheme)- चूंकि पहली दोनों स्कीम सरकार से जुड़ी हैं इसलिए सरकार अनाज की ख़रीद में निजी कंपनियों को भी शामिल करना चाहती है. राज्य सरकारें फ़सलों के दाम समर्थन मूल्य से नीचे जाने की हालत में कुछ चुनिंदा निजी कंपनियों को अनाज ख़रीदने की इजाज़त दे सकती हैं. कंपनियों को टैक्स में छूट और कमीशन देने की व्यवस्था की जाएगी. हालांकि इस विकल्प को फिलहाल केवल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ही शुरू किया जाएगा.

मोदी सरकार खोलेगी खज़ाना? इन तीनों विकल्पों को लागू करने के लिए मोदी सरकार अपना खज़ाना खोलने की तैयारी में है. एबीपी न्यूज़ को मिली एक्सलूसिव जानकारी के मुताबिक किसानों को कम से कम 50 फीसदी मुनाफ़ा दिलाने के लिए सरकार ने एक फंड बनाने का फैसला किया है. इस फंड में पैसा कितना रखा जाएगा इसकी पुख्ता जानकारी तो नहीं मिल पाई है लेकिन सूत्रों के मुताबिक ये फंड 50,000 करोड़ रूपये तक का भी हो सकता है. फंड का इस्तेमाल न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम में ख़रीद होने पर किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए किया जाएगा.

राज्यों पर छोड़ा जाएगा फ़ैसला इसका फ़ैसला राज्यों पर छोड़ा जाएगा कि वो अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ किस विकल्प को चुनते हैं. सरकार का फोकस इस बात पर ज़्यादा है कि किसानों को कम से कम समर्थन मूल्य जितना दाम ज़रूर मिल सके. क्योंकि होता ये है कि जो समर्थन मूल्य घोषित किया भी जाता है किसान को अपनी फ़सल का वो दाम भी नहीं मिल पाता है और उसे अपनी फ़सल औने पौने दामों पर बेचनी पड़ती है. ये भी एक सच्चाई है कि सरकार जिन 24 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है उनमें से केवल धान, गेंहू और कुछ हद तक दालों की ख़रीद सरकार करती है. बाकी फसलों के लिए किसानों को खुले बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है.

रिकॉर्ड समर्थन मूल्य का हुआ है एलान इसी साल 4 जुलाई को मोदी सरकार ने ख़रीफ़ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में लागत से डेढ़ गुना बढ़ोत्तरी का फ़ैसला किया था. उसके बाद से ही किसानों को ये मूल्य कैसे दिलवाया जाए इसपर माथापच्ची चल रही थी. गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में इस मसले पर बने मंत्रीसमूह में चर्चा के बाद इसपर नीति आयोग में भी चर्चा की गई. योजना को अंतिम रूप दिए जाने के बाद कृषि मंत्रालय ने इसे मंज़ूरी के लिए वित्त मंत्रालय भेजा था. सरकार ने पहली बार किसानों से गेहूं और धान के अलावा मोटे अनाज को भी ख़रीदने का फ़ैसला किया है.