सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (12 दिसंबर, 2025) को एक याचिका पर नाराजगी जताते हुए याचिकाकर्ता को खूब फटकार लगाई और साथ ही एक लाख रुपये का जुर्माना भी ठोक दिया है. यह याचिका माइनॉरिटी स्कूल को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत छूट देने के सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश के खिलाफ दाखिल की गई थी. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि इस तरह के मुकदमे दायर करके न्यायपालिका को नीचा न दिखाएं.

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जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. बेंच ने यह भी कहा कि अगर वकील इस तरह की सलाह दे रहे हैं तो उन्हें भी दंडित करना होगा. कोर्ट ने जुर्माना लगाते हुए कहा कि सख्त संदेश देना जरूरी है.

बेंच ने कहा, 'आप सुप्रीम कोर्ट के साथ ऐसा नहीं कर सकते. हम बहुत नाराज हैं. अगर आप इस तरह के मुकदमे दायर करना शुरू करते हैं, तो यह देश की पूरी न्यायिक व्यवस्था के खिलाफ होगा. आपको अपने मामले की गंभीरता का अंदाजा नहीं है. हम सिर्फ एक लाख रुपये का जुर्माना लगा रहे हैं.'

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कोर्ट ने यह भी कहा, 'इस तरह के मामले दायर करके देश की न्यायपालिका को बदनाम मत कीजिए. यहां क्या हो रहा है? क्या वकील इस तरह की सलाह दे रहे हैं? हमें वकीलों को दंडित करना होगा.' कोर्ट ने कहा, 'आप कानून के जानकार लोग और पेशेवर हैं और आप अनुच्छेद 32 के तहत इस न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर करते हैं? घोर दुरुपयोग. हम संयम बरत रहे हैं. हम अवमानना ​​का आदेश जारी नहीं कर रहे हैं. आप इस देश की न्यायपालिका को ध्वस्त करना चाहते हैं.'

यह याचिका एक एनजीओ ‘यूनाइटेड वॉइस फॉर एजुकेशन फोरम’ ने दायर की थी, जिसमें यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को दी गई छूट असंवैधानिक है क्योंकि यह उन्हें शिक्षा का अधिकार (RTI) अधिनियम के दायित्वों से पूर्ण रूप से छूट प्रदान करती है.

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में इस पर फैसला दिया था, जिसमें उसने कहा था कि आरटीई अधिनियम अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक विद्यालयों पर लागू नहीं होता है, जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और शासन का अधिकार प्रदान करता है.

 

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