नई दिल्ली: मीटू मूवमेंट के तहत यौन शोषण के आरोपों का सामना कर रहे पूर्व विदेश राज्य मंत्री मुबश्शिर जावेद अकबर रविवार की सुबह अफ्रीकी देश नाइजीरिया के दौरे से लौटे, बड़ी बेबाकी से अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज किया. उनके वतन लौटने से पहले केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उनका बचाव किया था, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि लौटने के 54 घंटे के बाद ही अकबर के दरबार को नेस्तोनाबूद कर दिया गया ? आखिर क्या वजह रही है कि अकबर की कुंडली पलट गई ? आइए बारी-बारी से जानते हैं कि क्यों अकबर को बड़े बेआबरू होकर मोदी के कूचे से बेदखल होना पड़ा.


वजह नंबर-1

मीटू मूवमेंट लगातार सुर्खियों में है, रोजाना नए खुलासे हो रहे हैं और अकबर के खिलाफ आरोप लगाने वाली 20 महिलाओं की फौज ही खड़ी हो गई. अब तक सामाजिक और पारिवारिक दबाव के कारण जो पीड़ित महिलाएं अपनी जुबानों पर ताला लगाए बैठी थीं, सबने सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया कि वो अकबर के खिलाफ बयान देंगी, गवाही देंगी. महिलाओं के इस साहस से मोदी सरकार डर गई, जगहंसाई का खौफ सताने लगा और फिर अकबर के सरकार में रहने की तान कमजोर पड़ गई.

वजह नंबर-2

अबकर पर यौन शोषण का आरोप सबसे पहले जिस महिला पत्रकार ने लगाया था उसका नाम है प्रिया रमानी. देश लौटने के बाद जब अकबर ने पटियाला हाउस कोर्ट में मानहानि का केस किया तो प्रिया ने भी एलान किया कि वो कानूनी लड़ाई लड़ेंगी और इंसाफ पाने के लिए अदालत की चौखट पर दस्तक देने से परहेज़ नहीं करेंगी, अपनी हाजिरी देंगी. प्रिया रमानी के इस हौसले ने अकबर और मोदी सरकार दोनों को पस्त किया.

वजह नंबर-3

जैसे ही अकबर ने प्रिया रमानी पर मानहानि का केस दर्ज किया, अकबर को लगा कि प्रिया रमानी डर जाएंगीं, लेकिन हुआ इसके उलट. प्रिया रमानी क्या, उनके साथ 20 दूसरी महिलाओं ने एलान किया कि वो भी अपनी आपबीती कोर्ट को सुनाएंगी. अब अकबर और मोदी सरकार को लगा कि अगर महिलाएं अपनी कहानी सुनाती हैं और वो बातें मीडिया में आती हैं तो सरकार की भद्द पिटेगी, छवि पर बुरा असर पड़ेगा और इस तरह अकबर की विदाई का रास्ता साफ हो गया.

वजह नंबर-4

जब से आरोप लगे, बीजेपी नेताओं से जवाब देते नहीं बन रहा था, हालांकि, बीच-बीच में अमित शाह और स्मृति ईरानी ने बचाव किया, लेकिन बात बन नहीं रही थी. एक पत्रकार ने बीजेपी के सबसे ज्यादा बोलने वाले प्रवक्ता संबित पात्रा से जब अकबर पर सवाल किया तो उनकी बोलती बंद हो गई. बोले तो क्या बोलें, नो कमेंट करते-करते सीधे अपनी गाड़ी की ओर तेज़ी से भागते हुए कार का गेट बंद कर लिया और हाथ जोड़ते-नमस्ते कहते हुए चल दिए. ये मजबूरी भी अकबर को मजबूर करने की वजह बनी.

वजह नंबर-5

कांग्रेस ने भी बीजेपी और मोदी सरकार पर नैतिक दबाव बनाया. दरअसल, एनएसयूआई के अध्यक्ष फिरोज खान पर यौन शोषण के आरोप लगे, फिरोज खान को इस्तीफा देना पड़ा, जैसे ही फिरोज खान ने अपना इस्तीफा सौंपा, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उसे स्वीकार करने में देरी नहीं की. अब कांग्रेस के इस कदम से भी बीजेपी पर खासा नैतिक दबाव बन गया... और ये कदम भी अकबर के लिए काल बन गया.

वजह नंबर-6

चुनाव का वक्त ऐसा होता है कि कोई भी पार्टी किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती. और विपक्षी पार्टी को बैठे बिठाए कोई मुद्दा तो बिल्कुल भी नहीं देने की चूक करती. ये तो पता ही है कि अगले दो महीने में पांच राज्यों की विधानसभा के लिए वोट डाले जाएंगे, तीन अहम राज्यों में तो बीजेपी ही सत्ता में है. चुनावी मौसम में अकबर कांड की गूंज भारी पड़ती, बीजेपी को लगता था कि विपक्ष इसे मुद्दा बना देगा. सरकार को ये भी पता है कि अकबर का कोई जनाधार नहीं है, इसलिए इनपर दांव खेलने की भी जरूरत नहीं है और इस तरह उनके इस्तीफे पर ये वजह ताबूत की आखिरी कील साबित हुई.