नई दिल्ली: बीएसपी सुप्रीमो मायावती को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहते सरकारी खर्च पर बनवाई गई अपनी मूर्तियां भारी पड़ सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहली नज़र में यही लगता है कि इनकी कीमत मायावती से वसूली जानी चाहिए. मामले पर अंतिम सुनवाई 2 अप्रैल को होगी.

जिस याचिका पर कोर्ट ने ये टिप्पणी की है वो 10 साल पुरानी है. 2009 में रवि कांत नाम के शख्स ने मायावती के सीएम रहते ये याचिका दाखिल की थी. याचिका में लखनऊ, नोएडा समेत राज्य के कई जिलों में बन रहे अलग-अलग स्मारकों पर सवाल उठाया गया था. इन स्मारकों में बहुजन आंदोलन से जुड़े महापुरुषों के साथ मुख्यमंत्री मायावती की मूर्तियां लगवाई जा रही थीं. इसके अलावा बीएसपी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां भी बड़े पैमाने पर लग रही थीं.

याचिकाकर्ता ने तब इन स्मारकों में सरकारी खजाने से 2600 करोड़ रुपए लगाए जाने का आरोप लगाया था. ये पैसे मायावती और बहुजन समाज पार्टी से वसूले जाने की मांग की थी. जवाब में यूपी सरकार ने दलील दी थी कि स्मारकों को राज्य कैबिनेट ने मंजूरी दी है. हाथियों की मूर्तियां बीएसपी के चुनाव चिन्ह जैसी नहीं हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी खर्चे से सीएम की मूर्तियां लगाने के इस मामले पर संज्ञान लेते हुए यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी. कोर्ट में सुनवाई लंबित रहने के दौरान स्मारकों का काम पूरा हो गया. आज लंबे अरसे के बाद मामला सुनवाई के लिए लगा था.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने टिप्पणी की, "पहली नज़र में यही लगता है कि मायावती को इन मूर्तियों पर हुआ खर्च वापस लौटाना चाहिए." हालांकि, ये महज़ एक टिप्पणी है. कोर्ट ने कहा है कि वो मामले पर 2 अप्रैल को अंतिम सुनवाई करेगा.

याचिकाकर्ता रवि कांत ने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए इस बात पर संतोष जताया कि लंबे अरसे बाद उनका मुकदमा अंजाम तक पहुंचने वाला है. उन्होंने कहा, "लखनऊ, नोएडा, कानपुर, बादलपुर वगैरह को मिला कर मायावती की कुल 40 बड़ी मूर्तियां लगीं. इसके अलावा उनके जीवन की घटनाओं को दिखाने वाली 200 छोटी मूर्तियां हैं. स्मारकों पर कुल 4 हज़ार करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. कोर्ट को जो उचित लगे, वो पैसे मायावती से वसूले जाने चाहिए."

इससे पहले लोकायुक्त की जांच में भी मायावती सरकार में मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 12 तत्कालीन विधायकों को स्मारकों के निर्माण में दोषी ठहराया जा चुका है. प्रवर्तन निदेशालय भी मामले में तेज़ी से जांच कर रहा है. अब चुनाव से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी बीएसपी सुप्रीमो को निश्चित रूप से खलेगी.

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