सुप्रीम कोर्ट में हुई जूता फेंकने की कोशिश की घटना पर पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने जजों की टिप्पणियों को लेकर नाराजगी जताई है. उनका कहना है कि जजों को सुनवाई के दौरान ज्यादा बोलना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करके वह खुद ही इस तरह की घटनाओं को आमंत्रित करते हैं. उन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ का भी जिक्र किया और कहा कि वह सुनवाई के दौरान बोलते ही रहते थे.
मार्कंडेय काटजू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस घटना को लेकर एक पोस्ट किया और अपना एक आर्टिकल भी शेयर किया. इसमें उन्होंने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज के रेप और मर्डर केस की सुनवाई का जिक्र किया है. उन्होंने कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ बार-बार कोर्ट में सवाल कर रहे थे कि एफआईआर फाइल करने में देरी क्यों हुई. उन्होंने कहा कि अनावश्यक टिप्पणियों की जरूरत नहीं है. मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति को रिस्टोर करने की मांग से जुड़ी याचिका पर यह टिप्पणी करने की जरूरत नहीं थी. उन्होंने कहा कि ये अनावश्यक और अनुचित टिप्पणी करके सीजेआई ने खुद ही इस घटना को आमंत्रित किया है.
मार्कंडेय काटजू ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के मामले की सुनवाई पर भी बात की और कहा कि सुनवाई कर रही बेंच के एक जज ने कहा कि प्रोफेसर का पोस्ट डॉग विस्लिंग है, इस टिप्पणी की क्या जरूरत थी.
अली खान महमूदाबाद ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया था, जिसे लेकर उन पर आरोप लगा कि उनके पोस्ट से देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा पैदा हुआ है. इसके चलते उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुईं और 18 मई को हरियाणा पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि, बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी.
अली खान महमूदाबाद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने पोस्ट के लिए उनकी खूब फटकार लगाई थी. इस दौरान उन्होंने यह भी कहा था कि अपने पोस्ट में प्रोफेसर ने जो बातें लिखीं, उसे डॉग विसलिंग कहते हैं. उन्होंने कहा था, 'सबको अभियक्ति की आजादी का अधिकार है, लेकिन क्या ये समय है ऐसी बातें करने का. उन्होंने कहा कि कुछ आतंकी देश में आकर हमारे लोगों पर हमला करके चले गए... हमें एकजुट होने की जरूरत है. ऐसे समय में ऐसी चीप पॉप्युलेरिटी की जरूरत थी?