भारत के स्वतंत्रता संग्राम का जब भी जिक्र किया जाता है तो इसमें मोहनदास करमचंद गांधी उर्फ महात्मा गांधी का जिक्र सबसे पहले होता है. इसके साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन, डांडी मार्च और अहिंसा की सोच का जिक्र भी किया जाता है, लेकिन गांधीजी भारत के हिंदुओं और मुसलमानों को लेकर क्या सोच रखते थे. इस बात का जिक्र शायद ही किया जाता है तो हम आपको बताएंगे के भारत की सांप्रदायिक स्थिति पर महात्मा गांधी के क्या विचार रखते हैं?

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महात्मा गांधी के मन में भारत के हिंदुओं और मुसलमानों के बारे में क्या विचार रखते थे. इस बात का जिक्र पूर्व पत्रकार पीयूष बबेले ने अपनी किताब ‘गांधी- सियायत और सांप्रदायिकता’ में विस्तार से किया है. पीयूष बबेले ने अपनी किताब में हिंदू-मुस्लिम को लेकर गांधी के विचार और सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द गांधी का जो लेखन है और उनके जो अंतर्विरोध हैं, उसका जिक्र किया है.

महात्मा गांधी के लेखन के संदर्भ से किताब में लिखा गया है कि, ‘जब इस तरह का विद्रोह हो रहा है तो कुछ मोप्ले पागल बन गए, इससे मुसलमान खराब नहीं माने जा सकते हैं. तीन वर्ष पहले शाहाबाद में हिंदू पागल हो गए, इससे हिंदू भी खराब नहीं माने जा सकते हैं.’

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इसके साथ, गांधी लिखते हैं कि, ‘अगर दोनों भाई एक साथ रहना चाहते हैं तो कोई भी तीसरा भाई उनके बीच दुष्टता नहीं कर सकता है.’

मुसलमानों की ओर से धर्म परिवर्तन कराए जाने पर क्या बोले गांधी?

इसके अलावा, यंग इंडिया में 20 अक्टूबर, 1921 को गांधी लिखते हैं कि मुसलमानों को धर्म परिवर्तन कराने पर शर्म आनी चाहिए. मोप्ला उपद्रव हिंदू और मुसलमानों के लिए एक परीक्षा है. हिंदू के मैत्री भाव पर ये जो भार आ पड़ा है, उसे क्या वह झेल पाएगा.’

जिन्ना के साथ महात्मा गांधी की क्यों हुई थी बहस?

इस किताब में महात्मा गांधी का जिन्ना के साथ एक बहस का जिक्र है. जिसमें जिन्ना कहते हैं कि सारे जगत के मुसलमानों का एकीकरण एक हउआ है. इस पर गांधी विरोध करते हुए कहते हैं कि केवल जोर देकर किसी बात का कहा जाना कोई प्रमाण नहीं होता.’

इसके अलावा, जिन्ना गांधी से कहते हैं कि, ‘ये बिल्कुल स्पष्ट है कि आप हिंदुओं के अलावा अन्य किसी के प्रतिनिधि नहीं और जब तक आप सही स्थिति को समझ नहीं लेते, तब तक चर्चा करना कठिन है.’ इस पर गांधी कहते हैं, ‘आप ये क्यों नहीं मान सकते हैं कि मैं भारत के सभी वर्गों के प्रतिनिधि होने की आकांक्षा रखता हूं. क्या आप ये आकांक्षा नहीं रखते? क्या प्रत्येक भारतीय को यह आकांक्षा नहीं रखनी चाहिए?’

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