नई दिल्ली: महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन का क्या होगा? बीजेपी-शिवसेना साथ चुनाव लड़ेंगी या अकेले? इन सभी सवालों के जवाब अब शिवसेना पर निर्भर है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये अब बीजेपी के अपने भी पराये जैसी बात कर रहे हैं. बीजेपी के दम पर सत्ता का मजा ले रही स्थानीय पार्टियां अब नसीहत और शर्त के साथ बीजेपी से सौदा करने लगी हैं. इस सौदेबाज़ी और बेरुख़ी ने नाराज़ बीजेपी ने अब शिवसेना को जल्द से जल्द गठबंधन पर फ़ैसला लेने के लिए कहा है वरना वो अकेले ही चुनाव लड़ने के लिए तैयार है.
शिवसेना ने बीजेपी पर दबाव बनाने की राजनीति पहले से ज्यादा तेज कर दी है जिससे बीजेपी नाराज है. शिवसेना ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का साथ देने के लिये पहले विधानसभा में सीटों के बंटवारे की बात साफ कर देने की शर्त रख दी है. लेकिन अब बीजेपी ने भी अपनी शर्तें शिवसेना के सामने रख दी हैं.
तीन राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद बदले समीकरण तीन राज्यों में मिली हार के बाद बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले बैकफुट पर चली गई है. बिहार में बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी के बीच हुए सीट बंटवारे के फ़ॉर्मूले से ये साफ संकेत मिलते हैं कि 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को साथ लेकर चलना चाहती है. बीजेपी को अब ये लगने लगा है कि मज़बूत गठबंधन ही उनकी 2019 में नइया पार लगाएगा. यही वजह है कि शिवसेना के लगातार हमलों के बावजूद बीजेपी, शिवसेना की नाराज़गी दूर कर चुनाव एक साथ लड़ने के लिए पिछले कई महीनों से मना रही है. लेकिन शिवसेना मान नहीं रही है.
बीजेपी केंद्र की सरकार के लिये राज्य की सत्ता गंवाना नहीं चाहती शिवसेना 2019 के लोकसभा में बीजेपी का साथ देने के लिये पहले विधानसभा में सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय करना चाहती है. लेकिन बीजेपी केंद्र की सरकार के लिये राज्य की सत्ता भी गंवाना नहीं चाहती है. ऐसे में बीजेपी ने शिवसेना से एक फार्मूले पर सहमति बनाकर गठबंधन पर जल्द निर्णय लेने के लिए कहा है. अगर शिवसेना ऐसा नहीं करती तो बीजेपी 'एकला चलो' के नारे के साथ आगे बढ़ जाएगी. सूत्र बताते हैं कि शिवसेना केंद्र में प्रधानमंत्री बीजेपी का और राज्य में मुख्यमंत्री शिवसेना का इसकी मांग कर रही है.बीजेपी के नेताओं की है अलग राय महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन अब पूरी तरह से शिवसेना पर निर्भर है. बीजेपी के कुछ नेता ये मानते हैं कि अगर बीजेपी अकेले चुनाव लड़ेंगी तो उनकी सीटों की संख्या में इज़ाफा होगा. वहीं कुछ नेता ये मानते हैं कि जितनी जरूरत बीजेपी को शिवसेना की है उतनी ही जरुरत शिवसेना को बीजेपी की. ऐसे में शिवसेना का दबाव झेलने के बजाए अब उनपर दबाव बनाना चाहिए.
यूपी के बाद सबसे बड़ा लोकसभा सीट वाला राज्य है महाराष्ट्र देश में उत्तर प्रदेश के बाद सबसे बड़ा लोकसभा सीट वाला राज्य महाराष्ट्र है. साल 2014 के चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 48 में से 39 सीटें मिली थी. लेकिन 2014 के बाद दोनों पार्टियों के रिश्तों में दरार आई. दोनों राज्य में गठबंधन की सरकार चला जरूर रहे हैं लेकिन एक दूसरे के दोस्त नहीं दुश्मन बनकर.
बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन नहीं होता है तो दोनों को बड़ा नुक़सान बीजेपी के सर्वे और तमाम जानकारों के मुताबिक अगर बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन नहीं होता है तो दोनों को बड़ा नुक़सान होगा. ये बात शिवसेना भी जानती है. इन्हीं कारणों की वजह से शिवसेना सरकार का दामन नहीं छोड़ती और इन्हीं कारणों की वजह शिवसेना राज्य में बीजेपी के साथ गठबंधन करेगी. लेकिन उससे पहले उद्धव ठाकरे बीजेपी को बताना और जताना चाहते हैं कि राज्य में शिवसेना ही बड़ा भाई है.
बीजेपी 2014 के सीट बंटवारे के फ़ॉर्मूले पर गठबंधन को तैयार सूत्र बताते हैं कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य नेतृत्व को अकेले चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार रहने को कहा है. सूत्रों के मुताबिक शिवसेना, बीजेपी के साथ लोकसभा में साल 2014 के सीट बंटवारे के फ़ॉर्मूले पर गठबंधन करने के लिए तैयार है. लेकिन पेंच विधानसभा सीट बंटवारे को लेकर फंस रहा है. शिवसेना चाहती है कि लोकसभा के समय ही विधानसभा सीट बंटवारे का फार्मूला तय हो और उन्हें ज़्यादा सीटें मिलें.
पिछले विधानसभा चुनावों में भी शिवसेना ने 288 सीटों में से 150 सीटें अपने लिए मांगी थी जिसे बीजेपी ने नामंज़ूर कर दिया था. लेकिन इस बार हालात बीजेपी के लिए अनुकूल नहीं हैं लिहाज़ा शिवसेना लोकसभा चुनाव में गठबंधन के बदले में विधानसभा चुनाव में ज़्यादा सीटों की मांग कर रही है. दूसरा प्रस्ताव जो बीजेपी के सामने है वो है लोकसभा और विधानसभा में 50-50 के फ़ॉर्मूले के साथ जाने का. अगर इस पर बीजेपी राज़ी हुई तो इसमें जीत शिवसेना की होगी.
शिवसेना, बीजेपी पर लगातार दबाव बना रही है ताकि बीजेपी उनकी शर्तों पर गठबंधन करें, जैसा साल 2014 से पहले बाल ठाकरे की उपस्थिति में होता था. तभी तो साल 2018 की शुरुवात में ही उद्धव ठाकरे ने एलान कर दिया था कि आने वाले चुनाव वो अब अकेले ही लड़ेंगे.
उद्धव ठाकरे के इसी बयान के बाद बीजेपी जो लगातार शिवसेना को छोटा भाई बताकर दबाती आ रही थी उसका दबाव कमजोर पड़ गया. बीजेपी का शिवसेना के प्रति रुख़ नरम हुआ और वो शिवसेना को साथ लेकर चलने के लिए मनाने लगी. मुलाक़ातों का दौर शुरु हुआ और ख़ुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह उद्धव ठाकरे से मिलने पहुंचे. राज्य के बीजेपी नेता लगातार मातोश्री के चक्कर काटने लगे. लेकिव उद्धव ठाकरे ने न बीजेपी पर आक्रामक हमले करना कम किए न ही अपनी भूमिका बदली और अपने नेताओं के जरिए बीजेपी पर दबाव जारी रखा.
तीन राज्यों में बीजेपी को मिली हार शिवसेना के लिए जीत साबित हुई शिवसेना के नेताओं का कहना है कि उनको कोई अल्टीमेटम या डेडलाइन नहीं मिली और आती तो भी शिवसेना ऐसे अल्टीमेटम की परवाह नहीं करती. वहीं अब तीन राज्यों में बीजेपी को मिली हार शिवसेना के लिए जीत साबित हुई है, वो भी बिना किसी मेहनत के. इन नतीजों के आधार पर शिवसेना बीजेपी पर सीटों के लिए दबाव और मज़बूती से बना रही है. लगातार हो रहे तीखे हमलों के बाद भी बीजेपी, शिवसेना को गठबंधन के लिए मनाने में जुटी है.
बाल ठाकरे के समय में बीजेपी अक्सर महाराष्ट्र में शिवसेना का छोटा भाई ही बनी रही. एक समय था जब गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी जैसे नेता गठबंधन तोड़कर अकेले चुनाव लड़ने की बात करते थे लेकिन वाजपेयी और अडवाणी के दबाव में गठबंधन चलता आया. लेकिन साल 2014 विधानसभा चुनाव में गठबंधन टूटा और बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इतने सालों तक शिवसेना का दबाव झेलने वाली बीजेपी अब शिवसेना भर भारी पड़ने लगी. शिवसेना पिछले साढ़े चार सालों से बीजेपी के इशारों पर चली लेकिन अब परिस्थिति बदल चुकी है.
कांग्रेस और एनसीपी ने भी 2014 की अपनी ग़लतियों से सबक लेकर लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन कर लिया जिससे बीजेपी पर शिवसेना को साथ लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है. इसी बीच शिवसेना ने बीजेपी के हिंदुत्व के मुद्दे को हाइजैक करना शुरू कर दिया. उद्धव ठाकरे ने राम मंदिर का मुद्दा उठाकर अयोध्या का दौरा किया जहां बीजेपी पर जमकर हमला बोला. बीजेपी इससे भी बैकफ़ुट पर गई. बीजेपी को ऐसा लगने लगा कि शिवसेना अब हिंदुत्व के मुद्दे पर गठबंधन करेगी लेकिन शिवसेना उसके बाद भी 'एकला चलो रे' का नारा देकर आगे बढ़ने लगी.
गठबंधन होना तय, लेकिन इस बार उद्धव ठाकरे की शर्तों पर शिवसेना के नेता भी ये जानती हैं कि अकेले चुनाव लड़ने से वो केवल बीजेपी के वोट काटेंगे. उससे पार्टी की सीटें नहीं बढ़ेंगी उल्टा नुक़सान होगा. ऐसी स्थिति में शिवसेना का बीजेपी के साथ गठबंधन होना तय है लेकिन इस बार बीजेपी की नहीं उद्धव ठाकरे की शर्तों पर.
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