महाराष्ट्र में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव से पहले हुए स्थानीय निकाय चुनावों ने राज्य की राजनीति में नई लकीरें खींच दी हैं. इन नतीजों ने न सिर्फ सत्तारूढ़ गठबंधन की ताकत को उजागर किया है, बल्कि विपक्ष की कमजोर होती पकड़ और आने वाले चुनावों की संभावित दिशा की भी साफ तस्वीर पेश कर दी है.

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बीजेपी का उभार: शहरी राजनीति में बढ़ती पकड़पहले दो चरणों में हुए नगर परिषद और नगर पंचायत चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी है. बड़ी संख्या में निकायों में आगे रहने का मतलब यह है कि शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में पार्टी का संगठन लगातार मजबूत हो रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी ने इन चुनावों को महज स्थानीय मुकाबला न मानकर बड़े चुनावों की तरह लड़ा, जिससे उसे सीधा लाभ मिला. यह संकेत भी मिलता है कि पार्टी भविष्य में सहयोगियों पर निर्भरता कम करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है.

ऐसे रहे नतीजेपहले दो चरणों में 288 नगर परिषदों और नगर पंचायतों में हुए मतदान में बीजेपी 129 निकाय जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. सत्ताधारी महायुति गठबंधन ने कुल मिलाकर 200 से ज्यादा निकायों में जीत दर्ज की, जिससे उसकी मजबूत स्थिति सामने आई. गठबंधन में शिवसेना (शिंदे गुट) ने 51 और एनसीपी ने 33 निकायों में सफलता हासिल की.

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इसके उलट विपक्षी महाविकास आघाड़ी का प्रदर्शन कमजोर रहा और वह 50 के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई. कांग्रेस ने 35 निकाय जीते, जबकि शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) को सिर्फ 8-8 निकायों में जीत मिली.

महायुति मजबूत, लेकिन भीतर छिपा असंतुलननतीजों के लिहाज से सत्ताधारी महायुति गठबंधन स्पष्ट रूप से मजबूत स्थिति में दिखता है. हालांकि, गठबंधन के भीतर शक्ति संतुलन तेजी से बीजेपी के पक्ष में झुकता नजर आ रहा है. बीजेपी की लगातार बढ़त से शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी जैसे सहयोगी दलों के राजनीतिक दायरे पर असर पड़ सकता है. यही वजह है कि गठबंधन की जीत के बावजूद अंदरखाने चिंता की हलचल से इनकार नहीं किया जा सकता.

फडणवीस फैक्टर और नेतृत्व का असरइन नतीजों को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व से जोड़कर देखा जा रहा है. चुनाव प्रचार में उनकी सक्रियता और संगठन पर मजबूत पकड़ ने पार्टी को एकजुट बनाए रखा.बीजेपी नेतृत्व का दावा है कि मतदाताओं ने राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर स्थिर शासन के पक्ष में भरोसा जताया है, जिसका असर स्थानीय चुनावों में भी दिखा.

महाविकास आघाड़ी के लिए खतरे की घंटीविपक्षी महाविकास आघाड़ी के लिए ये नतीजे गंभीर चेतावनी हैं. लगातार चुनावी असफलताओं से गठबंधन की जमीनी ताकत कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है. खास तौर पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) का कमजोर प्रदर्शन यह संकेत देता है कि उनका संगठन और कार्यकर्ता नेटवर्क दबाव में है. बीएमसी चुनावों से पहले यह स्थिति उद्धव ठाकरे गुट के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है.

कांग्रेस का आरोप और रणनीतिक सवालकांग्रेस ने इन नतीजों पर सवाल उठाते हुए सत्ता पक्ष पर सरकारी तंत्र और संसाधनों के दुरुपयोग के आरोप लगाए हैं. हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सिर्फ आरोपों से आगे बढ़कर कांग्रेस और एमवीए को अपनी संगठनात्मक रणनीति पर गंभीर पुनर्विचार करना होगा.

बीएमसी चुनाव से पहले बदला माहौलस्थानीय निकाय चुनावों ने यह साफ कर दिया है कि आगामी मुंबई नगर निगम चुनाव में मुकाबला आसान नहीं होने वाला. सत्तारूढ़ गठबंधन आत्मविश्वास में है, जबकि विपक्ष को खुद को दोबारा खड़ा करने के लिए समय और ठोस रणनीति दोनों की जरूरत है.

सियासत का नया मोड़इन नतीजों का सबसे बड़ा संदेश यही है कि महाराष्ट्र की राजनीति एक नए दौर में प्रवेश कर रही है. बीजेपी की बढ़ती ताकत, महायुति के भीतर बदलता संतुलन और एमवीए की चुनौतियां - ये सभी मिलकर आने वाले महीनों में राज्य की सियासी दिशा तय करने वाले कारक बन सकते हैं.