नई दिल्ली: 200 साल पुराने एक युद्ध की बरसी पर लगी आग में आज तीसरे दिन पूरा महाराष्ट्र जला. दलित संगठनों ने विरोध स्वरूप आज महाराष्ट्र के बंद का एलान किया था. इस दौरान आगजनी, तोड़फोड़ और सड़क जाम की भी घटनाएं हुईं. 18 जिलों में जिंदगी ठप सी रही. मुंबई पुलिस ने बंद के दौरान हुई तोड़फोड़ को लेकर दंगा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले दर्ज करने की बात कही है.


मुबई में भी दिखा बंद का असर
पुणे हिंसा के विरोध में दलित संगठनों के बंद का असर मुंबई पर साफ देखा गया. प्रदर्शनकारियों ने जगह जगह रास्ते जाम किए और रेल रोकी गई. इसका सबसे ज्यादा असर सड़क यातायात पर पड़ा. ईस्टर्न एक्सप्रेव हाइवे में चेंबूर और छेड़ानगर के पास प्रदर्शनकारियों ने कई घंटों तक सड़क जाम रखी. इस रास्ता रोको से पहले LBS रोड पर प्रदर्शनकारियों ने आगजनी भी की.


सेंट्रल रेलवे में घाटकोपर और विक्रोली के बीच ट्रेनें करीब घंटे भर से भी ज्यादा वक्त तक ऐसे ही खड़ी रहीं क्योंकि बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी ट्रैक पर आ गए और महिलाएं ट्रेन के सामने खड़ी हो गईं. मुंबई से बाहर जाने वाले ज्यादातर रास्ते दिन भर जाम रहे. सड़कों से टैक्सी-ऑटो गायब रहे, दादर, अंधेरी, दहिसर, विरार और गोरेगांव में भी ट्रेनों को रोका गया, ज्यादातर जगहों पर ट्रेनों की आवाजाही में औसतन 20 से 25 मिनट की देर हुई.


महाराष्ट्र में अलग अलग जगहों पर भी उपद्रव
जिस पुणे शहर में हुई हिंसा की वजह से दलित संगठनों ने बंद बुलाया वहां भी प्रदर्शनकारियों ने जमकर हंगामा किया. यहां पर बसों पर पथराव की वजह से यात्रियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पथराव के बाद अंबेडकर नगर में धारा 144 लगा दी गई.


पुलिस ने लोगों को घर में रहने की हिदायत दी. सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए इंटरनेट पर भी रोक लगाई गई. रायगढ़ में प्रदर्शनकारी मुंबई गोवा हाइवे पर पहुंच गए, हंगामे की वजह से काफी देर तक हाइवे पर आवाजाही बंद रही. इसके अलावा महाराष्ट्र के नांदेड़. चिपलुन, वर्धा, कोल्हापुर, जलगांव, मनमाड़, अमरावती, चंद्रपुर, और बारामती में भी बंद का असर देखा गया.


एक दूसरे पर आरोप लगी रही बीजेपी-कांग्रेस
कांग्रेस हिंसा के पीछे बीजेपी और आरएसए का हाथ बता रही है तो बीजेपी राहुल गांधी पर आरोप लगा रही है. लोकसभा में भी आज इस मुद्दे पर कांग्रेस ने सरकार को घेरने की कोशिश की. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री से पूरे मामले पर बयान देने की मांग की.


कांग्रेस के आरोप पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की ओर से भी पटलवार हुआ. संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कांग्रेस पर समाज को तोड़ने का आरोप लगा दिया. विपक्ष तो विपक्ष एनडीए के सहयोगी शिवसेना भी भीमा-कोरेगांव की हिंसक झड़प को बीजेपी सरकार की चूक बता रहे हैं.


क्या है इस पूरे बवाल की वजह?
महाराष्ट्र में हिंसा की शुरुआत के बीज 29 दिसंबर को पड़ चुके थे. पुणे के पास वडू गांव में शिवाजी के बेटे संभाजी की समाधि है और उनका अंतिम संस्कार करने वाले गोविंद महाराज की भी समाधि यहीं पर है. गोविंद महाराज की समाधि पर तोड़फोड़ से विवाद शुरू हुआ. हमले का आरोप मिलिंद एकबोटे के संगठन हिंदू एकता मोर्चा पर लगा. वडू गांव में उस दिन कोई हिंसा नहीं हुई, लेकिन बहस के बाद एफआईआर दर्ज करायी गई.


हिंदू एकता मोर्चा के कार्यकर्ताओं समेत 49 लोगों पर दलित उत्पीड़न एक्ट का केस दर्ज हुआ. संगठन के प्रमुख मिलिंद एकबोटे पर केस नहीं हुआ. 29 से 31 दिसंबर तक वडू गांव में शांति बनी रही. आरोप है कि एफआईआर से नाराज मिलिंद एकबोटे के संगठन के लोगों ने भीमा कोरेगांव में दलितों के कार्यक्रम में हमला किया. इसी के विरोध में दलित संगठन पूरे महाराष्ट्र में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.


देश में दलित राजनीति का असर?
देश में करीब 16 फीसदी दलित आबादी है, यूपी में कुल आबादी का करीब 21 फीसदी दलित है. पंजाब की आबादी में 32 फीसदी तो महाराष्ट्र में दलितों की आबादी 12 फीसदी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में दलितों के वोट का बड़ा हिस्सा बीजेपी के खाते में गया था, जो कि मोदी की बंपर जीत का एक बड़ा कारण रहा. 2014 में दलितों को लुभाने के लिए बीजेपी ने बिहार में पासवान से समझौता किया. महाराष्ट्र में रामदास अठावले की पार्टी को साथ में जोड़ा और दिल्ली में उदित राज की जस्टिस पार्टी का विलय कराया. इस गठबंधन का नतीजा ये हुआ कि देश की सबसे बड़ी दलित नेता माने जाने वाली मायावती की पार्टी लोकसभा में खाता भी नहीं खोल पाई.